अध्याय3 श्लोक42,43 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 3 : कर्म योग

अ 03 : श 42-43

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥
एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्‌ ॥

संधि विच्छेद

इन्द्रियाणि पराणि अहुह इन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसः तु परा बुद्धिः यः बुद्धेः परतः तु सः ॥
एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्य आत्मानं आत्मना ।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्‌ ॥

अनुवाद

इन्द्रियां स्थूल [प्राकृतिक] पदार्थों से श्रेष्ठ हैं, मन इन्द्रियों से श्रेष्ठ है, बुद्धि मन से भी श्रेष्ठ हैं और जो बुद्धि से भी श्रेष्ठ है वह है आत्मा | इस प्रकार यह जानकर कि जीवात्मा बुद्धि से [इसलिए मन और इन्द्रियों से भी ] श्रेष्ठ है, अपने आप को आत्मा में स्थित करो और हे महाबाहो! इस वासना रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त करो|

व्याख्या

इन दो श्लोकों को एक साथ पढ़ना चाहिए| इन दोनों श्लोकों में बाद का श्लोक(#४३) को अगर स्वतन्त्र पढ़ा जाये तो समझना कठिन हो सकता है क्योंकि इस श्लोक की भाषा अत्यंत कठिन है|

पिछले श्लोक में भगवान ने वासना पर नियंत्रण प्राप्त करने के प्रारंभिक उपाय का वर्णन किया| इस श्लोक में भगवान वासना और इन्द्रियों पर नियंत्रण करके आत्म संयम और दूसरा और प्रभावी उपाय का वर्णन किया है| इसके लिए सबसे पहले श्री कृष्ण ने मनुष्य में इन्द्रिओं, मन और बुद्धि के सापेक्षिक क्रमवद्ध स्थिति के रहस्य का वर्णन किया| भगवान ने कहा कि अगर इन्द्रियां प्राकृतिक वस्तुओं से श्रेष्ठ है, लेकिन मन इन्द्रियों से श्रेष्ठ है, बुद्धि मन से श्रेष्ठ है, लेकिन जो बुद्धि से भी श्रेष्ठ है वह है आत्मा|

इस प्रकार अगर क्रम में ऊपर के निकाय को नियंत्रित किया जाये तो उसके नीचे के निकाय अपने आप नियंत्रण में आते हैं| जैसे मन को नियंत्रित कर लिया जाये तो इन्द्रियों पर नियंत्रण किया जा सकता है, इसी प्रकार अगर बुद्धि पर नियंत्रण हो जाये तो मन तो इन्द्रियों पर नियंत्रण हो जायेगा| और अगर कोई अपने आत्मा में स्थित हो जाए तो वह बुद्धि, मन और इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण कर सकता है|