संधि विच्छेद
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायः हि अकर्मणः।
शरीर यात्रा अपि च ते न प्रसिद्धयेत् अकर्मणः ॥
अनुवाद
[इसलिए] तुम अपना स्वाभाविक कर्म करो क्योंकि कुछ करना, कुछ न करने से सर्वथा उत्तम है| बिना कर्म किये तो शरीर का निर्वाह (भरण-पोषण) भी संभव नहीं है|
व्याख्या
पिछले श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्म की सार्वभौमिता और अवश्यमभाविता सिद्ध की| उन्होने बताया कि कर्म न करना तो कोई विकल्प ही नहीं है| कर्म किये बिना तो कोई जीवित ही नहीं रह सकता| यहाँ तक की शरीर का भरण पोषण करने के लिए भी कर्म करना ही पडता है| तुम कुछ न कुछ तो करोगे ही इसलिए वह करो जो तुम्हारे अपने स्वभाव से मेल खाता हो, जो तुम्हारे लिए नियत है |