अध्याय3 श्लोक8 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 3 : कर्म योग

अ 03 : श 08

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः ॥

संधि विच्छेद

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायः हि अकर्मणः।
शरीर यात्रा अपि च ते न प्रसिद्धयेत् अकर्मणः ॥

अनुवाद

[इसलिए] तुम अपना स्वाभाविक कर्म करो क्योंकि कुछ करना, कुछ न करने से सर्वथा उत्तम है| बिना कर्म किये तो शरीर का निर्वाह (भरण-पोषण) भी संभव नहीं है|

व्याख्या

पिछले श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्म की सार्वभौमिता और अवश्यमभाविता सिद्ध की| उन्होने बताया कि कर्म न करना तो कोई विकल्प ही नहीं है| कर्म किये बिना तो कोई जीवित ही नहीं रह सकता| यहाँ तक की शरीर का भरण पोषण करने के लिए भी कर्म करना ही पडता है| तुम कुछ न कुछ तो करोगे ही इसलिए वह करो जो तुम्हारे अपने स्वभाव से मेल खाता हो, जो तुम्हारे लिए नियत है |