अध्याय4 श्लोक12 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 4 : ज्ञान योग

अ 04 : श 12

काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः ।
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ॥

संधि विच्छेद

काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः ।
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिः भवति कर्मजा ॥

अनुवाद

जो इस लोक में जिन्हें कर्मो में सफलता की कामना होती है वे इष्ट देवताओं की पूजा करते हैं| निःसंदेह [देवताओं की पूजा से] उन्हें मन वांछित सफलता प्राप्त होती है|

व्याख्या

यह श्लोक, इस इस लोक में भौतिक सफलता प्राप्ति की इक्षा करने वाले मनुष्यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है| यह श्लोक इस प्रश्न का भी उत्तर देता है कि देवताओं की पूजा क्यों करनी चाहिए|

भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि जो मनुष्य इस लोक में भौतिक सफलता की कामना करते हैं वे उसके इष्ट देवता की साधना करते हैं| अध्याय ३(श्लोक#११) में भगवान ने पहले ही स्पस्ट किया है कि देवताओं के रचना इसी प्रयोजन से की गई है कि वे मनुष्यों के भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करें|

अगर मनुष्य किसी भौतिक लालसा से उचित रूप से उचित देवता की साधना करते हैं तो उन्हें वह सफलता अवश्य प्राप्त होती है| जैसे विद्या प्राप्ति के लिए माता सरस्वती की साधना करनी चाहिए| धन संपत्ति के लिए मा लक्ष्मी या कुबेर की साधना करनी चाहिए| समृधि आदि के लिए श्री गणेश की पूजा, इत्यादि|

इस श्लोक से देवताओं की साधना और उसकी उपयोगिता सिद्ध होती है|