संधि विच्छेद
श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयत इन्द्रियः ।
ज्ञानं लब्धवा परां शान्तिम् अचिरेण अधिगच्छति ॥
अनुवाद
[वह मनुष्य ] जो श्रद्धावान है, [ज्ञान प्राप्ति के लिए] तत्पर (उत्सुक) है, तथा जिसका अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण है वह सुलभता से [आत्म] ज्ञान प्राप्त करता है| ज्ञान प्राप्त करके वह शीघ्र ही परम शांति की अवस्था को प्राप्त होता है |
व्याख्या
पिछले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने ज्ञान प्राप्ति के मुख्य सिद्धांत का वर्णन किया| जो मनुष्य योग के मार्ग पर निरंतर अग्रसर रहता है वह एक समय के पश्चात ज्ञान की परम अवस्था को प्राप्त करता है| इस श्लोक में भगवान ज्ञान प्राप्ति में सहायक कारकों का वर्णन कर रहे हैं|
भगवान ने तीन कारकों का वर्णन किया, वे निम्न हैं
१. ईश्वर में अटूट श्रद्धा
२. ईश्वर या ज्ञान प्राप्ति के लिए उत्सुकता या तत्परता
३. इन्द्रियों पर नियंत्रण
जो मनुष्य इन तीन गुणों को धारण करते हैं उन्हें सुलभता से आत्म ज्ञान प्राप्त होता है| आत्म ज्ञान प्राप्त करने के बाद वैसा मनुष्य शीघ्र ही ईश्वरीय आनंद को प्राप्त कर लेता है|