अनुवाद
जो मनुष्य विवेकहीन है, श्रद्धाहीन है और संशययुक्त है वह आत्मज्ञान से वंचित हो जाता है [और स्वयं का पतन कर देता है] | वैसा मनुष्य न इस लोक में सुखी रहता है और न ही परलोक में|
व्याख्या
इसके पहले भगवान ने ज्ञान की महिमा और आत्म ज्ञान प्राप्त करने के कारकों का वर्णन किया| ईश्वर में श्रद्धा रखकर, इन्दिर्यों को वश में करके जो ईश्वर प्राप्ति का प्रयास करता है वह निश्चय ही आत्म ज्ञान प्राप्त करता है| वैसा मनुष्य इस जीवन में ही परम शांति प्राप्त करता है और इस जन्म के बाद मोक्ष को प्राप्त करता है|
लेकिन अगर कोई मनुष्य ऐसा है जो न तो ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है, न उसे ईश्वर में श्रधा ही है और न ही उसे शास्त्रों पर विश्वास है, वह निश्चय संसार की भूल भुलैया में लुप्त होकर अपने आप का पतन कर देता है|
इस श्लोक में भगवान ने इस तथ्य का वर्णन किया है |
यह कोई बड़ी बात नहीं है कि कोई व्यक्ति अज्ञानी है, लेकिन अगर वह ईश्वर में श्रद्धा रखता है और शास्त्रों पर विश्वास करके ज्ञान प्राप्ति का प्रयास करता है तो वह देर सवेर ज्ञान प्राप्त कर ही लेता है| लेकिन अगर कोई व्यक्ति अज्ञानी है, और उसे ईश्वर या शास्त्रों में विश्वास ही नहीं है और न ही वह ज्ञान प्राप्ति का कोई उपाय करता है तो फिर ऐसे व्यक्ति के लिए ज्ञान प्राप्त करने का कोई मार्ग शेष नहीं रहता| ऐसे मनुष्य इस जगत की भूल भुलैया में लुप्त होकर दुखों के शिकार हो जाते हैं| उनका यह जन्म तो बेकार होता ही है अगले जन्म में भी सुख प्राप्त करने के अवसर कम हो जाते हैं|