दोनों सेनाओं का विवरण और अर्जुन का युद्ध से विषाद
सांख्य योग
कर्म योग
ज्ञान योग
कर्म सन्यास योग
राज या ध्यान योग
अध्यात्म योग
अक्षर ब्रम्ह योग
राज विद्या राज गुह्य योग
विभूति योग
विश्व रूप दर्शन
भक्ति योग
पुरुष और प्रकृति
प्रकृति के तीन गुण
पुरुषोत्तम योग
दैवीय और दानवीय चरित्र
श्रद्धात्रयविभाग योग
मोक्ष सन्यास योग
1,2
3
4
5
6
7
8
9
10
11
12
13
16,17
18,19
20,21
23
24
25,26
27
28
29,30
30,31
31
32
33
34
36,37
38
39
40
41
42
अ 04 : श 06
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् । प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ॥
संधि विच्छेद
अजः अपि सन् अव्यय आत्मा भूतानाम् ईश्वरः अपि सन् । प्रकृतिं स्वाम् अधिष्ठाय सम्भवामि आत्म-मायया ॥
यद्यपि मैं अजन्मा और अविनाशी एवं समस्त प्राणियों का परमात्मा(ईश्वर) हूँ तदापि [जीवों के कल्याण के लिए] मैं अपनी प्रकृति को अपने अधीन करके योगमाया से प्रकट होता हूँ(अर्थात लौकिक शरीर धारण करता हूँ)॥