अध्याय4 श्लोक10 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 4 : ज्ञान योग

अ 04 : श 10

वीतरागभय क्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः ।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ॥

संधि विच्छेद

वीत राग भय क्रोधः मत्-मया माम् उपाश्रिताः ।
बहवो ज्ञानतपसा पूताः मत्-भावम् अगताः ॥

अनुवाद

भौतिक मोह, भय और क्रोध से मुक्त, मेरी अनन्य भक्ति में लीन और मुझपर पूर्ण आश्रित होकर भूतकाल में कई भक्त मुझे प्राप्त कर चुके हैं|

व्याख्या

इसके पहले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया था कि जो मनुष्य उनकी अलौकिक लीला के रहस्यों को जानकार उनमे अनन्य भक्ति धारण करता है वह निश्चय ही इस जन्म में ईश्वर की कृपा प्राप्त करता है और इस जीवन के बाद ईश्वर के धाम में निवास करता है|
उसी परिपेक्ष्य में भगवान ने इस श्लोक में यह स्पस्ट किया कि भूतकाल अर्थात आज के पहले कई भक्तों ने मेरी अनन्य भक्ति की जिसके फलस्वरूप उन्होंने ईश्वर की सत्ता को प्राप्त हुए| कोई भी मनुष्य जो ईश्वर की अनन्य भक्ति करता है वह भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त होता है|