अध्याय5 श्लोक17 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 5 : कर्म सन्यास योग

अ 05 : श 17

तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः ।
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः ॥

संधि विच्छेद

तत्-बुद्धयः तत्-आत्मनः तत्-निष्ठाः तत्-परायणाः ।
गछन्ति अपुनः अवृत्तिं ज्ञान निर्धूतः कल्मषाः ॥

अनुवाद

जिसकी बुधि, मन और निष्ठा परमात्मा में स्थिर हो जाती है वह ज्ञान से आक्षादित हो जाता है और सभी दुर्गुणों से मुक्त होकर पवित्र हो जाता है| तब वह सीधा मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाता है जहाँ से फिर उसे जन्म मरण के चक्र में पुनरावृति नहीं होती |

व्याख्या

पिछले शलोक में भगवान ने ज्ञान की महिमा का वर्णन करते हुए बताया था कि ज्ञान सूर्य के समान मनुष्य के मन से सभी दुर्गुणों को दूर करके इसे पवित्र करता है| इस श्लोक में भगवान पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग बता रहे है|
श्री कृष्ण ने बताया कि जब मनुष्य अपनी बुधि, मन और अपनी निष्ठा को परमात्मा में स्थिर करता है तब उसे उस परम ज्ञान की प्राप्ति होती है| इस परम ज्ञान की अवस्था में मनुष्य सभी प्रकार से पवित्र हो जाता है और मोक्ष का भागी होता है| वैसे मनुष्य की फिर इस मृत्यु लोक में पुनः वापसी नहीं होती|