अध्याय5 श्लोक24 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 5 : कर्म सन्यास योग

अ 05 : श 24

योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः ।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥

संधि विच्छेद

यः अन्तः-सुखः अन्तः-अरामसः तथा अन्तः-ज्योति एव यः ।
स योगी ब्रम्ह निर्वाणं ब्रम्ह भूतः अधिगच्छति ॥

अनुवाद

जो [मनुष्य] अपनी अंतःकरण में सुखी है, अपनी आत्मा में ही रमण करने वाला है और जो आत्म ज्ञान की ज्योति से प्रकाशित है, वह [सच्चा] योगी ब्रम्ह के साथ एकीकार हो जाता है और ब्रम्ह को प्राप्त करता है|

व्याख्या

पिछले श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने आधात्मिक और भौतिक सुखों का वर्णन किया| भौतिक सुख अल्कालिक होते हैं और अध्यात्मिक सुख अक्षय और दीर्घकालिक होते हैं| इस श्लोक से शुरू होकर अगले तीन श्लोक में उस अध्यात्मिक अवस्था को प्राप्त करने के विभिन्न तरीकों का वर्णन है|२७,२८ वें श्लोक में ध्यान के द्वारा आत्मसाक्षात्कार की विधि का वर्णन और आखिरी श्लोक में यह स्पस्ट किया गया है कि भगवान श्री कृष्ण सभी साधना और योग का लक्ष्य हैं|

इस श्लोक में भगवान ने यह स्पस्ट किया है कि आत्म साक्षात्कार की अवस्था ही ब्रम्ह की अवस्था है | आत्म साक्षात्कार की अवस्था कई प्रकार से प्राप्त की जा सकती है| कोई जो ईश्वर का अनन्य भक्त है और भक्ति में लीन होकर अपने अंदर की ओर केंद्रित होता है | दूसरा ज्ञान के मार्ग से प्रकाशित होकर आत्म साक्षात्कार की अवस्था में पहंचता है| किसी भी मार्ग से जब वैसा साधक आत्म साक्षात्कार कर लेता है तो वह ब्रम्ह को प्राप्त कर लेता है|