अध्याय5 श्लोक29 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 5 : कर्म सन्यास योग

अ 05 : श 29

भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्‌ ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥

संधि विच्छेद

भोक्तारं यज्ञ तपसां सर्वलोक महेश्वरम्‌ ।
सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिम् रच्छति ॥

अनुवाद

मैं सभी यज्ञ और तपों का भोक्ता(यज्ञ और तप को स्वीकार करने वाला), सम्पूर्ण लोकों का ईश्वर और सभी जीवों का सुहृदय(सच्चा मित्र) हूँ | इस रहस्य को जानने वाला [सच्चा भक्त] [निर्भिग्य होकर] परम शांति प्राप्त करता है|

व्याख्या

यह इस अध्याय का अंतिम श्लोक है| पिछले चार श्लोको में भगवान श्री कृष्ण ने ज्ञान, कर्म, तपस्या और योग साधना के द्वारा मोक्ष प्राप्ति का उपाय बताया | यह संभव है कि साधारण मनुष्य के मन उन चार मार्गों में से एक को चुनने को लेकर भ्रम उत्पन्न हो जाये|
इस श्लोक में भगवान ने सभी मार्गों द्वारा प्राप्त होने वाले परम लक्ष्य के रहस्य का उद्घाटन किया| भगवान ने स्पस्ट किया कि वह स्वयं इस सम्पूर्ण ब्रम्हांड के ईश्वर हैं, सही जीवों का दयालु मित्र हैं | हर एक प्रकार की साधना, यज्ञ या तपस्या अंततः भगवान श्री कृष्ण के पास ही पहुंचती है | कोई भी मनुष्य साधना के किसी भी मार्ग का का चयन कर भगवान की साधना करता है तो वह साधना भगवान ग्रहण करते हैं| इस तथ्य को श्रीमद भगवद गीता में दूसरे स्थान पर भी स्पस्ट वर्णन है

“हे अर्जुन! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार फल प्रदान करता हूँ क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं “॥4:11॥

जो मनुष्य इस रहस्य को जानता है वह भ्रमित नहीं होता और निश्चिंत होकर शांति पूर्वक ईश्वर की साधना करता है |