अध्याय6 श्लोक11,12 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 6 : राज या ध्यान योग

अ 06 : श 11-12

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः ।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम्‌ ॥
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः ।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥

संधि विच्छेद

शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरम् आसनं आत्मनः ।
न अति उच्छ्रितं न अति नीचं चैल अजिन कुशोत्तरम्‌ ॥
तत्र एकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्त् इन्द्रिय क्रियः ।
उपविश्य आसने युञ्ज्यात् योगं आत्म विशुद्धये ॥

अनुवाद

शुद्ध स्थान, जो भूमि से न बहुत ऊँचा हो नः बहुत नीचा, पर कुश घास या मृग छाल के ऊपर कोमल वस्त्र बिछाकर बने स्थिर आसन पर बैठकर, मन को एकाग्र कर, इन्द्रियों को वश में रखते हुए योगी अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करे|

व्याख्या