अध्याय6 श्लोक16,17 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 6 : राज या ध्यान योग

अ 06 : श 16-17

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः ।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥

संधि विच्छेद

न अति अश्नस्तः तु योगः अस्ति न च एकान्तं अनश्नतः ।
न च अति स्वप्नशीलस्य जाग्रतः न एव च अर्जुन ॥
युक्त आहार विहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मसु ।
युक्त स्वप्न अवबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥

अनुवाद

हे अर्जुन! योग उनके द्वारा सिद्ध नहीं होता है, जो ज्यादा खाते हैं या बहुत कम खाते हैं, जो ज्यादा सोते हैं या कम सोते हैं| सभी दुःखों को अंत करने वाला योग उनको सिद्ध होता है जो खान पान, सोने जागने में संतुलन रखते हैं और अपने कर्मो पर नियंत्रण रखते हैं|
 

व्याख्या