अध्याय6 श्लोक31 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 6 : राज या ध्यान योग

अ 06 : श 31

सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः ।
सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥

संधि विच्छेद

सर्व भूतस्थितं यो मां भजति एकत्वं अस्थितः
सर्वथा वर्तमानः अपि स योगी मयि वर्तते ॥

अनुवाद

सभी प्राणियों में मैं [ईश्वर] ही स्थित हूँ इस सत्य को जानकर जो [भक्त] एकाकी भाव से मेरी साधना करता है, वह सब प्रकार से जीवन यापन करते हुए भी मुझमे ही स्थित रहता है|

व्याख्या

ऊपर के श्लोक में सनातन धर्मं के सबसे गुढ़ रहस्यों में से एक ईश्वर की सार्वभौमिकता का वर्णन है| हम शायद इसका अनुभव न कर पाते हों लेकिन यह सिद्धांत पुरे हिंदू समाज की नींव है, एक हिंदू चाहे वह अनपढ़ ही क्यों न हो लेकिन उसका यह विश्वास है कि ईश्वर कण कण में व्याप्त है इसलिए लिए वह कठिन परिस्थियों में भी जीव और प्रकृति के विरुध कार्य करने में संकोच करता है| यह सिद्धांत हजारों सालों से हिंदू समाज की नींव है|

ऊपर के श्लोक में भगवान ने यह स्पस्ट किया है कि इस ब्रम्हांड में प्रत्येक चर और अचर वस्तुएँ या जीव भगवान श्री कृष्ण के ही रूप हैं| हमे ज्ञात हो कि ईश्वर की दो शक्तियां हैं, माया और ब्रम्ह| माया सभी भौतिक पदार्थों का श्रोत है और ब्रम्ह सभी जीव आत्माओं का| इस प्रकार हम जो कुछ भी इस प्रकृति में देखते हैं वह ईश्वर के अंaपिछले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि पूरी श्रृष्टि उनके ही अंशों से निर्मित है और उनका तत्व सभी चर और अचर में विद्यमान है| जो इस तत्व को जान लेता है उसके मन से भौतिक संसार का आवरण हट जाता है और वह ईश्वर को अपने समीप ही पाता है|

उसी तथ्य से आगे भगवान ने इस श्लोक में बताया कि वैसा सिद्ध योगी चाहे कोई कार्य कर रहा हो, किसी भी पेशे में हो वह हर जगह ईश्वर की सत्ता के पास ही होता है उसका फिर परमात्मा से अलगाव नहीं होता वह ईश्वर से एकीकर हो जाता है| आत्मा और परमात्मा के बीच का भेद समाप्त हो जाता है|

शब्दार्थ

भूत = जीव, प्राणी
एकत्वं = एक रूप, ईश्वर का प्राणियों के साथ एकरूपता
वर्तमान = होना, वर्तमान काल किसी वस्तु के होने का द्योतक है,
वर्ततः = होना, रहना
शों से ही निर्मित है|
इसलिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि एक सच्चा योगी इस तथ्य को जब जान लेता है तब वह ईश्वर को सर्वत्र ही पाता है|
मेरे ख्याल से आम मनुष्य जब ईश्वर के बारे में सोचते हीं तों ईश्वर का मूल रूप जो स् शास्त्रों में वर्णित है,को देखना चाहते हैं| हाँ उस रूप का दर्शन दुर्लभ है क्योंकि भगवान उस रूप के साथ अपने धाम में निवास करते हैं और हमेशा उस रूप को प्रकट नहीं करते|
लेकिन फिर भी उस स्थिति में भी भगवान ने यह स्पस्ट किया है कि उनका भक्त कभी उनकी आँखों से ओझल नहीं होता| यह सत्य जानकर हमे अधीर नहीं होना चाहिए|