अध्याय6 श्लोक41,42 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 6 : राज या ध्यान योग

अ 06 : श 41-42


प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः ।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्‌ ।
एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम्‌ ॥

संधि विच्छेद

प्राप्य पुण्यकृतां लोकान् उषित्वा शाश्वतीः समाः ।
शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टः अभिजायते ॥
अथवा योगिनाम् एव कुले भवति धीमताम्‌ ।
एतद् हि दुर्लभतरं लोके जन्म यत् इदृशम्‌ ॥

अनुवाद

अपने पुण्य कर्मो से प्राप्त भोगों को कई वर्षों तक भोगने के बाद [योग या आध्यात्म में] असफल योगी [अगले जन्म में] श्रेष्ठ और पवित्र परिवार(घर) में जन्म लेते हैं| या वह [असफल योगी] [अगले जन्म में] सिद्ध योगी(सिद्ध महात्मा) के कुल में जन्म लेता है| लेकिन इस प्रकार का जन्म प्राप्त करना बहुत दुर्लभ है|

व्याख्या

पिछले श्लोक में भगवान ने अर्जुन के प्रश्न का उत्तर देते हुए स्पस्ट शब्दों में यह आश्वाशन दिया कि एक भक्त जो ईश्वर की शरण में एक बार आ जाता है वह फिर किसी भी प्रकार से पतन को प्राप्त नहीं होता|
इन श्लोकों से लेकर अगले सात श्लोकों में भगवान ने उस गहन रहस्य का वर्णन किया है कि किस प्रकार असफल भक्त के इस जीवन और अगले आने वाले जीवन की रक्षा होती है और कैसे वह मोक्ष के मार्ग तक पहुँचता है?

इन दो श्लोकों में कृपा सिंधु भगवान श्री कृष्ण ने दो प्रकार के स्थितियों का वर्णन करते हुए अगल जन्म में असफल भक्त के उत्थान का वर्णन किया है, वह इस प्रकार हैं

१ वे भक्त जो अध्यात्म में निम्न स्तर तक ही पहुँचकर असफल होते हैं

पहला वर्ग वैसे मनुष्यों का है जो ईश्वर के भक्त तों हैं परन्तु किसी कारणवश जैसे शारीरिक कमी, संयम का अभाव या सामाजिक कारणों से योग या आध्यात्म में अधिक सफलता प्राप्त नहीं कर पाते | ऐसे भक्त अपनी क्षमतानुसार प्रयास भी करते हैं लेकिन असफल रहते हैं|

भगवान ने स्पस्ट किया कि ऐसे मनुष्य भौतिकवादी होते हुए भी अगर वह ईश्वर में श्रधा रखते हैं, और अपने कार्य के प्रति ईमानदार हैं, तों ईश्वर भक्ति की पुण्य प्रवृति होने के कारण वे भौतिक सुखों को भी शांति पूर्वक और बेहतर प्रकार से जीते हैं| ईश्वर उनकी भौतिक इक्षा और पुण्य कार्यों के अनुसार सुखी भौतिक जीवन प्रदान करते हैं|
अपना भौतिक जीवन सुख के साथ जीने के बाद अगले जन्म ये पवित्र और शुद्ध आचरण वाले परिवार में जन्म लेते हैं| अगले जन्म में उनकी वह सभी कमियां जिसके कारण उनकी साधना असफल रही थी पूरी होती हैं |वह फिर अपने पुण्य कर्मो के प्रताप से जन्म से ही पवित्र संस्कार प्राप्त करता है आगे ईश्वर के मार्ग में उत्थान करता है|

२, वे भक्त जो योग के एक उच्च स्तर तक पहुंचकर असफल होते हैं

दूसरा वर्ग वैसे भक्तों का है जो इस जन्म में ही योग और अध्यात्म में बहुत आगे निपुण होते हैं लेकिन फिर भी पूर्ण रूप से सिद्ध नहीं हो पाते| भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि वैसे अगले जन्म में सिद्ध सन्यासी, महात्मा या ज्ञानी के घर में जन्म लेते हैं और जन्म से ही आध्यात्म की विलक्षण प्रवृति प्राप्त करते हैं| परन्तु भगवान ने यह भी स्पस्ट किया कि इस प्रकार का जन्म दुर्लभ है|

इस प्रकार दो प्रकार की स्थितियों का वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि भगवान के भक्त कभी पतन को प्राप्त नहीं होता| भले ही इस जीवन में वह असफल हो जाए तब भी अगले जन्म में वह उचित स्थान, परिवार और शारीरिक एवं मानसिक क्षमता के साथ जन्म लेता है जहाँ से वह मुक्ति के मार्ग तक पहुंच ही जाता है| इस प्रकार ईश्वर का भक्त हमेशा सुरक्षित रहता है|