संधि विच्छेद
योगिनाम् अपि सर्वेषां मत गतेना अन्तरात्मना ।
श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमः मतः ॥
अनुवाद
समस्त योगियों और अन्य सभी में भी जिसने अपनी अंतरात्मा को मुझमे पूर्ण रूप से स्थित कर लिया है(अर्थात जो मेरे प्रति पूर्ण समर्पित है) और जो श्रधा भाव से मेरी [निरंतर] साधना करता है वह सबसे उत्तम है |
व्याख्या
पिछले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि एक योगी, तपस्वी, ज्ञानी और कर्मकांडी से श्रेष्ठ है|
इस श्लोक में भगवान योगियों और सभी मनुष्यों में भी जो सबसे उत्तम है उसका वर्णन कर रहे है|
भगवान ने यह स्पस्ट किया कि जो मनुष्य पूर्ण रूप से भगवान अर्थात श्री कृष्ण के चरणों एम् समर्पित हो जाता है और उनकी पूर्ण श्रधा भाव से उनकी साधना करता है वह दूसरेमनुष्यों ही नहीं योगियों से भी उत्तम है| अगर दूसरे शब्दों में इसे समझने का प्रयास करें तों ईश्वर का सच्चा भक्त जो अपने पूर्ण अस्तित्व को ईश्वर की चरणों में सर्मर्पित कर देता है वह सर्वोत्तम है| अर्थात भक्ति सभी योग और सभी ज्ञान से उत्तम है