अध्याय6 श्लोक10 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 6 : राज या ध्यान योग

अ 06 : श 10

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥

संधि विच्छेद

योगी युञ्जीत सततम् आत्मानं रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीः अरपरिग्रहः ॥

अनुवाद

योग में सिद्धि के लिए योगी, शांत स्थान पर स्थित होकर सभी मोह और भौतिक चिंताओं का त्याग करके और पर अपने मन को अंतःकरण में केंद्रित करके सतत (लगातार) अभ्यास करे|

व्याख्या

इस श्लोक से लेकर श्लोक #१७ ध्यान साधना की विधि का वर्णन हैं| इस श्लोक में भगवान ने ध्यान योग की प्राथमिक आवश्यकताओं का वर्णन किया है|
जो मनुष्य ध्यान में सिद्धि प्राप्त करना चाहता है उसे किसी शांत स्थान का चयन करना चाहिए | ध्यान की साधना के लिए मनुष्य को सभी भौतिक मोह या चिंताओं को को अलग करके अपने मन को अपनी अन्तः करण पर केंद्रित करना चाहिए| इस श्लोक से यह भी पूर्ण विदित है कि सिद्धि के लिए सतत प्रयास की आवश्यकता है| जो ऊपर की विधि का पालन करते हुए दृढ संकल्प करके निरंतर साधना करता है उसे सिद्धि अवश्य प्राप्त होती है|