अध्याय7 श्लोक19 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 19

बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥

संधि विच्छेद

बहूनां जन्मनाम् अन्ते ज्ञानवान् मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वम् इति स महात्मा सुदुर्लभः ॥

अनुवाद

बहुत जन्मो के पश्चात् कोई ज्ञानवान मेरी ऐसी भक्ति प्राप्त करता है जिसके लिए मैं वासुदेव ही सबकुछ होता हूँ| ऐसा महात्मा दुर्लभ है|

व्याख्या

पिछले श्लोकों में श्री भगवान ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया और यह भी स्पस्ट किया कि उनमे वह भक्त जो मुझ परमेश्वर को सबकुछ मानकर बिना किसी लालसा या कामना के सिर्फ मुझे प्राप्त करने के लिए मुझमे समर्पित होता है वह श्रेष्ठ है|

लेकिन वैसे भक्त का होना भी अपने आप में आसन नहीं बल्कि कठिन है| कई जन्मो के लगातार भक्ति के बाद कोई भक्त उस महान अवस्था को प्राप्त करता है जहाँ ईश्वर ही उसके लिए सबकुछ हो जाता है|
यह भी है कि भक्ति की यह सबसे उच्च अवस्था है, इतना महान कि इस अवस्था ईश्वर और भक्त के बीच भेद समाप्त हो जाता है| लेकिन ऐसा नहीं कि भक्ति की दूसरी अवस्थाएं श्रेष्ठ नहीं होती | जैसा के ऊपर के श्लोकों में भी भगवान ने स्पस्ट किया कि भक्ति चाहे कैसी भी हो वह श्रेष्ठ है|
इसके पहले अध्याय ६ में यह विस्तृत रूप से वर्णित किया गया कि कोई भी मनुष्य किस भी समय ईश्वर की शरण में आ जाता है तों उसका फिर पतन नहीं होता| उत्थान ही होता है| इस जन्म में नहीं तों अगले जन्म में वह ईश्वर पवित्र भक्ति को प्राप्त कर ही लेता है| ईश्वर की भक्ति अतः मोक्ष की गारंटी है|