अध्याय7 श्लोक20,21 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 20-21

कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥
यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति ।
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्‌ ॥

संधि विच्छेद

कामैः तैः तैः हृता ज्ञानाः प्रपद्यन्ते अन्य देवताः ।
तं तं नियमाम् आस्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥
यः यः यां यां तनुं भक्तः श्रद्धया अर्चितुम इच्छति ।
तस्य तस्य अचलां श्रद्धां तामेव विदधामि अहम्‌ ॥

अनुवाद

भौतिक सुखों की कामना के वशीभूत [कई] सांसारिक मनुष्य [मेरे अलावा भी] कई दूसरे देवताओं की अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार भिन्न भिन्न रूप से पूजते हैं | [वैसा मनुष्य] जिस जिस देवता के प्रति अपनी श्रधा रखता हैं मैं उस देवता के प्रति उस [भक्त] की श्रधा दृढ कर देता हूँ|

व्याख्या

पिछले श्लोकों में भगवान ने अपने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया और यः भी कि उनमे वह भक्त जो श्री कृष्ण को अपना सबकुछ मानकर पूर्ण समर्पित होता है श्रेष्ठ है|

लेकिन अधिकतर मनुष्य सांसारिक होते हैं उनकी जीवन की बहुतक आवश्यकताएं होती हैं| इसके अलावा अलग अलग मनुष्यों का स्वभाव भी अलग अलग होता है | कोई मनुष्य एक प्रकार से साधना करना पसंद करता है कोई दूसरे प्रकार से| किसी को धन, तों किसी को स्वास्थ्य की कामना होती है| अलग अलग भौतिक इक्षाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य अलग अलग देवताओं को अपनी सुविधनुसार उचित विधियों से पूजा करते हैं|

भगवान श्री कृष्ण ने यः स्पस्ट किया कि दूसरे देवताओं का पूजन भी उचित है| श्री कृष्ण ने यहाँ तक स्पस्ट किया कि जो भक्त जिस दे देवता की पूजा करना चाहता है वह[श्री कृष्ण] उस देवता के प्रति उस मनुष्य की श्रधा दृढ कर देते हैं|

इसमे दो महत्वपूर्ण बातें ध्यान देने योग्य है,
१. जैसा कि अध्याय ३ में वर्णित किया गया है, देवता मनुष्य से श्रेष्ठ प्राणी हैं और मनुष्यों के भौतिक सुविधाओं की पूर्ति के लिए उनका निर्माण किया गया है| देवता मनुष्यों की भौतिक सुविधाओं का ध्यान रखते हैं और मनुष्य विभिन्न विधियों द्वारा देवताओं की पूजा करते हैं| यः विधान श्रृष्टि के आरम्भ में तय किया गया है

प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ द्वारा सभी जीवों को रचकर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ द्वारा वृद्धि को प्राप्त हो ओ और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करने वाला हो॥( Ch3:Sh10)

तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं को प्रसन्न करो और वे देवता तुम लोगों का पालन(देखभाल) करें। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से एक दूसरे में सामंजस्य रखते हुए तुम(देवता और मनुष्य) परम कल्याण को प्राप्त होओ॥( Ch3:Sh11)

२. सभी देवता भगवान श्री कृष्ण की विभूतियों का विस्तार हैं| किसी भी देवता को अर्पित साधना अंततः भगवान श्री कृष्ण(श्री विष्णु) को ही प्राप्त होती है| इस तथ्य का वर्णन अध्याय चार में किया गया है

हे अर्जुन! जो [भक्त] जिस प्रकार मेरी साधना करते हैं मै उनको उसी प्रकार पुरस्कृत करता हूँ [फल प्रदान करता हूँ] क्योंकि सभी भक्त [कैसे भी साधना करें या किसी देवता का पूजन करें] सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं |( Ch4:Sh11)