अध्याय7 श्लोक22 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 22

स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।
लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान्‌ ॥

संधि विच्छेद

स तया श्रद्धया युक्तः तस्य आराधनम् इहते ।
लभते च ततः कामान् मया एव विहितान् हि तान्

अनुवाद

वह मनुष्य अपने आराध्य देवता का श्रद्धापूर्वक पूजन करता है और [निःसंदेह ही] मन वांछित फल प्राप्त करता है| परन्तु वास्तव में [देवताओं के पूजन से प्राप्त] वह फल भी मेरे द्वारा ही प्रदान किया जाता है|

व्याख्या

इसके पहले के श्लोक में मनुष्यों द्वारा दूसरे देवताओं की पूजन विधि का वर्णन किया गया | जैसा कि अध्याय-३:श्लोक१०-११ भगवान ने यह स्पस्ट किया है कि देवता मनुष्य के अभिभावक हैं जिनकी रचना मनुष्यों की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति और देख रेख के लिए विधि के विधान के अनुसार की गई है| इस कारण मनुष्यों द्वारा देवताओं का पूजन उचित है|
इस श्लोक में भगवान यह स्पस्ट कर रहे हैं कि जो मनुष्य अपनी किसी कामना की पूर्ति के लिए अपने किसी आराध्य या इष्ट देवता की पूर्ति करते हैं उनको फल मिलता है|
लेकिन इसी श्लोक में भगवान गुढ़ रहस्य का भी वर्णन किया, वह यह कि किसी भी देवता के पूजन में जो फल प्राप्त होता है वह वास्तव में स्वयं उनके द्वारा(श्री कृष्ण के द्वारा) दिया जाता है|
इस तथ्य को और स्पष्टता से समझने के लिए हमे अध्याय ४ के इस श्लोक को पढ़ना चाहिए

हे अर्जुन! जो [भक्त] मेरे जिस प्रकार मेरी साधना करते हैं मै उनको उसी प्रकार पुरस्कृत करता हूँ [फल प्रदान करता हूँ] क्योंकि सभी भक्त [कैसे भी साधना करें या किसी देवता का पूजन करें] सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं | Ch4:Sh11

अर्थात कोई भी मनुष्य किसी देवता की पूजा करे, अंततः वह भगवान श्री कृष्ण के पास ही पहुंचती है वैसे ही जैसे किसी भी नदी में किया गया अर्पण अंततः सागर में पहुँच जाता है|
इसी प्रकार किसी भी देवता की साधना में प्राप्त फल भी वास्तव में भगवान श्री कृष्ण के द्वारा ही प्रदान किया जाता है|

ऊपर का यह श्लोक देवताओं की पूजा और साधना से सम्बंधित सभी आशंकाओं का समाधान है|