अध्याय7 श्लोक23 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 23

अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्‌ ।
देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥

संधि विच्छेद

अन्तवत्तु फलं तेषां तत् भवति अल्प मेधसाम्‌ ।
देवान् देव यजः यान्ति मत भक्ता यान्ति माम् अपि ॥

अनुवाद

[भौतिक पदार्थों की इक्षा से पूजा करने वाले] वैसे सीमित [अध्यात्मिक] ज्ञान वाले सांसारिक मनुष्यों को प्राप्त भौतिक फल अल्पकालिक होते है| जो देवताओं को पूजते हैं वह देवताओं को प्राप्त होते हैं, और मेरे भक्त मुझे प्राप्त करते हैं|

व्याख्या

पिछले श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि विभिन्न भौतिक इक्षाओं की पूर्ति के लिए सांसारिक मनुष्य अपने अपने इष्ट देवताओं का पूजन करते हैं और अगर उनकी पूजा उत्तम हो तों निसंदेह देवता उनको उचित फल प्रदान करते हैं|

लेकिन भौतिक पदार्थ चाहे कितना उत्तम क्यं न हो वह नश्वर और अल्पकालिक ही होता है| ज्यादा से ज्यादा एक मनुष्य अपने जीवन काल तक उस भौतिक वस्तु का प्रयोग कर सकता है उसके बाद नहीं | देवताओं की पूजा के फलस्वरूप किसी को अगर भौतिक पदार्थ प्राप्त हो भी गए तों अल्पकालिक होंगे| इसी तथ्य का वर्णन इस श्लोक में किया गया है|

यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य बात है कि यह श्लोक उन श्लोकों में से है जिसको कई लोगों द्वारा गलत समझा जाता है| कई हिंदू विरोधी लोगों ने इस श्लोक का प्रयोग हिंदू पूजा पद्धति के विरुध प्रचार के लिए भी प्रयोग किया है|

इस श्लोक में स्पस्ट रूप से भौतिक पदार्थों की नश्वरता का वर्णन किया गया है| कोई सांसारिक व्यक्ति अपने भौतिक सुख और समृधि की लालसा करता है वह अपने आप में गलत या सही नहीं है| कोई इक्षा गलत तब है जब वह स्वार्थ पर आधारित हो, और जो दूसरों का हक मारकर प्राप्त किया गया है| अगर कोई ईमानदारी से सांसारिक सुख और समृधि की लालसा करता है तों वह कतई गलत नहीं है|

लेकिन दोनों ही स्थितिओं में चाहे गलत हों या सही, प्राकृतिक वस्तुएँ नश्वर हैं और यह सार्वभौमिक सत्य है|

इस श्लोक में एक दूसरे तथ्य का भी वर्णन है, भगवान ने यह स्पस्ट किया कि जो मनुष्य जिस देवता की साधना करते हैं वह उस देवता के धाम में जाते हैं| जैसे इन्द्र, वरुण आदि देवताओं की साधना करने वाले मनुष्य इस जीवन के पश्चात देव लोक में जाते हैं| श्री कृष्ण के भक्त श्री कृष्ण के धाम में जाते हैं|