अध्याय7 श्लोक24 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 24

अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्‌ ॥

संधि विच्छेद

अव्यक्तं व्यक्तिम् आपन्नं मन्यन्ते माम् अबुद्धयः ।
परं भावम् अजानन्तः मम अव्ययम् अनुत्तमम्‌ ॥

अनुवाद

अज्ञानी लोग [इस रहस्य को] नहीं जानते कि मैं अव्यय(कभी न परिवर्तित होने वाला) और परम (जिसके परे कुछ न हो) हूँ| वे मुझे निराकार से परिवर्तित होकर मनुष्य रूप धारण करने वाला मानते हैं|

व्याख्या

यह एक बहुत महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है और धर्म से सम्बंधित एक बहुत बड़े प्रश्न का उत्तर देता है| ईश्वर साकार है या निराकार यह बहुत लंबे समय से एक वाद-विवाद का विषय रहा है|
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने स्पस्ट रूप से यह वर्णित किया है कि उनका स्वरूप निराकार नहीं है| और जब वह अवतार ग्रहण करते हैं तों निराकार से साकार नहीं होते बल्कि अपनी माया की शक्ति को परिवर्तित करके एक साकार से दूसरे साकार रूप में प्रकट होते हैं|
अध्याय ४ के श्लोक ६ में भगवान ने अवतार की प्रक्रिया का वर्णन करते हुए यह स्पस्ट किया है कि जब वह अवतार लेते हैं हैं तों अपनी माया को संतुलित करके अपने रूप को प्रकट करते हैं
Ch4:sh 6:
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्‌ ।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ॥

यद्यपि मैं अजन्मा और अविनाशी एवं समस्त प्राणियों का परमात्मा(ईश्वर) हूँ तदापि (जन कल्याण के लिए) मैं अपनी प्रकृति को अपने अधीन करके योगमाया से प्रकट होता हूँ(अर्थातभौतिक शरीर धारण करता हूँ)॥

वैसे तों ईश्वर के तों अनंत रूप है लेकिन हर स्थिति में वह माया की शक्ति कर परिवर्तन है ईश्वर अपने मूल रूप हमेशा एक समान और पूर्ण रूप में स्थित होते हैं|