अध्याय7 श्लोक26 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 26

वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन ।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥

संधि विच्छेद

वेद अहं सम अतीतानि वर्तमानानि च अर्जुन ।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥

अनुवाद

हे अर्जुन! मैं भूतकाल,वर्तमान और भविष्य में आने वाले सभी जीवों को जानता हूँ, लेकिन कोई भी जीव मुझे [पूर्णता से] नहीं जानता

व्याख्या

इसके पहले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने माया में बंधे होने के कारण भौतिक शरीर की सीमा का वर्णन किया | माया में सीमित भौतिक शरीर द्वारा मनुष्य के लिए ईश्वर का साक्षात्कार अत्यंत दुर्लभ है| माया का बंधन मात्र एक सीमा नहीं, समय का बंधन भी है|

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण श्री कृष्ण एक ओर जहाँ भौतिक जीवों के ऊपर समय की सीमा का उल्लेख कर रहें है वहीँ दूसरी ओर अपनी ईश्वर शक्ति के विस्तार का वर्णन कर रहे हैं| पूर्व श्लोकों में यह बताया गया कि किस प्रकार श्री कृष्ण माया की सीमाओं के परे हैं| इस श्लोक में श्री कृष्ण इस रहस्य का वर्णन कर रहे हैं कि वह समय की सीमा के भी परे हैं| भूतकाल और वर्तमान ही नहीं बल्कि भविष्य में आने वाले सभी जीवों को वह जानते हैं| लेकिन कोई भी उन्हें नहीं जानता| कोई मनुष्य और यहाँ तक कि देवता भी उन्हें नहीं जान पाते इसका कारण दूसरे रूप में अध्याय १० के श्लोक #२ में भी वर्णित है जो इस विषय पर बात को और स्पस्ट करता है

मेरी उत्पत्ति के रहस्य को न तों देवता और महान ऋषि भी नहीं जानते क्योंकि मै देवता, ऋषि सहित सबका निर्माता हूँ|(Ch10.Sh2)