अध्याय7 श्लोक30 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 30

साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥

संधि विच्छेद

स अधिभूत अधिदैवं मां स अधियज्ञं च ये विदुः ।
प्रयाणकाले अपि च मां ते विदुः युक्त चेतसः ॥

अनुवाद

मैं भौतिक विभूतियों का मूल सिद्धांत, सभी देवों का मूल रूप(अधिदैव) और सभी यज्ञों का पोषक हूँ| जो मनुष्य इस [तथ्य] को जानते हैं वे मृत्यु के सामने(अन्त समय में) भी मेरी भक्ति से विमुख नहीं होते|

व्याख्या

यह इस अध्याय का अंतिम श्लोक है लेकिन इस श्लोक में सनातन धर्म के सबसे गुढ़ सिधान्तों में से कुछ सिधान्तों की पृष्ठभूमि है| यह सिद्धांत हैं १. अधिभूत २. अधिदैव और ३. अधियज्ञ | यह तीन सिद्धांत अपने आप में ब्रम्हांड के मुख्य कार्मिक सिधान्तों का आधार हैं और इनका वर्णन किसी भी दूसरे ग्रंथों में अत्यंत दुर्लभ है| इन सिधान्तों का वर्णन अगले अध्याय का विषय है लेकिन इनका सारांश निम्न प्रकार से है

१. अधिभूत : इसका शाब्दिक अर्थ है भौतिक पदार्थों का आधार या मूल | यह भौतिक जगत भौतिक पदार्थ और उनके नियंत्रक प्राकृतिक नियमों से निर्मित है| यह सारे पदार्थ और इनके सभी नियंत्रक नियम भगवान श्री कृष्ण की शक्ति से उत्पन्न हैं| इसलिए श्री कृष्ण को अधिभूत कहा जाता है|

२. अधिदैव: पृथ्वी पर मनुष्य और कई प्रकार के जीव हैं, पृथ्वी के अलावा कई उपरी लोक हैं जहाँ पर मनुष्यों से उत्तम जीव रहते हैं जिन्हें देव या देवता कहा जाता है| विभिन्न रूपों में दृष्टिगोचर यह देवता ब्रम्हांड के आरम्भ में भगवान श्री कृष्ण के अंशों से उत्पन्न किये गए| देवताओं की रचना और उनकी उपयोगिता का वर्णन अध्याय ३ और ४ में किया गया है|
भगवान श्री कृष्ण सभी देवताओं के श्रोत है, इसलिए इन्हें(श्री कृष्ण को) अधिदैव कहा जाता है|

३. अधियज्ञ

यज्ञ इस ब्राम्हण के सभी कर्मो के मूल हैं और यज्ञ का मूल स्वयं श्री कृष्ण हैं| भक्तों को यह सूचित कर दे कि यज्ञ भगवान श्री कृष्ण का एक अवतार है| किसी भी भक्त द्वारा किया गया कोई भी यज्ञ, किसी भी देवता को अर्पित साधना अंततः भगवन श्री कृष्ण तक पहुंचती है| इस प्रक्रिया या गुण को अधियज्ञ कहा जाता है|

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि भगवान श्री कृष्ण अधिभूत,, अधिदैव और अधियज्ञ हैं | जो मनुष्य इस रहस्य को जान लेता है वह सभी भय और भ्रम से मुक्त हो जाता है और उसकी भक्ति स्वतः ही भगवान श्री कृष्ण ने स्थित हो जाती है यहाँ तक की मौत के सामने भी वह भक्त अपनी भक्ति पर अडिग रहता है|