संधि विच्छेद
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद् यतति सिद्धये ।
यतताम् अपि सिद्धानां कश्चिद् माम् वेत्ति तत्वतः ॥
अनुवाद
हजारों में कोई एक [मनुष्य] [अध्यात्म में या योग में] सिद्धि प्राप्त करने के लिए यत्न करता है| उन हज़ार सिद्ध मनुष्यों में कोई एक मुझे तत्व से जान पाता है|
व्याख्या
इस अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने ईश्वरीय गुणों और ईश्वर की प्रकृति का वर्णन किया है | वैसे तों लगभग सभी अध्यात्मिक सिद्धांत गुढ़ होते हैं लेकिन ईश्वर के गुणों और उनकी प्रकृति को समझना सबसे कठिन है| पिछले श्लोक में ही भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को सावधान किया कि वह अपना ध्यान केंद्रित करे |
इस श्लोक में उसी विषय से सम्बंधित भगवान ने दूसरा तथ्य भी प्रस्तुत किया| श्री कृष्ण ने कहा कि वैसे तों बहुत मनुष्य ईश्वर को प्राप्त करना चाहते हैं, ईश्वर के दर्शन करना चाहते हैं लेकिन ईश्वर को प्राप्त करने की जो योग्यता है कुछ लोग प्राप्त कर पाते है| हजारों में से कुछ लोग ही अध्यात्मिक ज्ञान का मार्ग चुनते हैं| फिर हजारों सिद्ध पुरुषों में कुछ ही ईश्वर के अनन्य भक्त हो पाते हैं और ईश्वर को पूर्ण रूप से जान पाते हैं|