अध्याय7 श्लोक4,5,6 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 04-06

भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्‌ ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते धार्यते जगत्‌ ॥
एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।

संधि विच्छेद

भूमि: आपः अनलः वायुः खं मनः बुद्धिः एेव च ।
अहङ्कार इति इयं मे भिन्ना प्रकृतिः अष्टधा ॥
अपरा इयं इतः तु अन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्‌ ।
जीवभूतां महाबाहो यया इदं धार्यते जगत्‌ ॥
एतद् योनीनि भूतानि सर्वाणि इति उपधारय ।

अनुवाद

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार, ये आठ प्रकार के तत्व जिससे यह सृष्टि बनी है मेरी ही मेरी ही प्रकृति से उद्धृत हैं।
ये आठ मेरी निन्म प्रकृति हैं| हे महाबाहो, इनके अलावा मेरी शक्ति का उतम रूप है जीवभूत (अर्थात जीवन शक्ति), जिससे पूरी सृष्टि में जीवन स्थित है॥
[इस श्रृष्टि में] सबकुछ और सभी जीव [मेरी] इन [दो शक्तियों] से निर्मित हैं, इस प्रकार यह जान लो मैं कि इस श्रृष्टि का श्रृजनकर्ता और प्रलयकर्ता हूँ|

व्याख्या

जैसा पहले बताया गया यह पूरा अध्याय ही ईश्वर की प्रकृति और ईश्वर के गुणों का वर्णन है जिसमे कई गुढ़ रहस्यों और सिद्धांतों का उल्लेख है|
ऊपर के दो श्लोक ईश्वर के दो अपने आप के सनातन धर्मं के एक बहुत बड़े विषय को उद्धृत कर रहे हैं| ये दो श्लोक न सिर्फ ईश्वर की दो मूल प्रकृति बल्कि श्रृष्टि निर्माण के मूल तत्वों का वर्णन कर रहे हैं|

भगवान श्री कृष्ण ने स्पस्ट शब्दों में अपने दो प्रकार की प्रकृति(शक्ति या गुण) का उल्लेख किया जो इस प्रकार है
१. भौतिक शक्ति
ईश्वर की भौतिक शक्ति अर्थात प्रकृति के आठ अंग हैं,पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार| पहले पांच तत्व निर्जीव प्रकृति के श्रोत हैं, शेष तीन जीवों के शरीर में जीवन के समय स्थित होते हैं| हमे ज्ञात हो कि पांच तत्व का सिर्फ शाब्दिक अर्थ नहीं लेना चाहिए, बल्कि यह तत्वों का वर्गीकरण हैं उनकी संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार है

पृथ्वी: सभी ठोस तत्व या पदार्थ इस श्रेणी में आते हैं|
जल: सभी तरल पदार्थ
अग्नि: उर्जा, बल और वैसे भौतिक इकाई
वायु: गैसीय तत्व और पदार्थ
आकाश: निर्वात, चुम्बकीय, गुरुत्व क्षेत्र आदि सब इसश्रेणी में आते हैं|

यह वर्गीकरण रसायन शास्त्र के वर्तमान वर्गीकरण से भिन्न है| रसायन शास्त्र के तत्व सिर्फ तीन प्रकार के ही हैं ठोस, द्रव(जल) और गैसीय(वायु) | ऊपर के व् वर्गीकरण में भौतिक इकायिओं जैसे क्षेत्र और उर्जा को शामिल किया गया है|

यह पांच मूल तत्व प्रकृति के निर्जीव जगत के अवयव हैं| आगे के तीन तत्व जीवित पदार्थों के अवयव हैं उनका सारांश में वर्णन इस प्रकार है|
१ मन: यह मस्तिस्क और अंगों की एक इकाई है, जो जीव के जीवन में उसकी इक्षाओं को निर्धारित करता है|
२. बुधि: जीव द्वारा जीवन यापन के सम्बंधित निर्णय लेने की क्षमता बुधि कहलाती है, बुधि के द्वारा ही एक जीव अपने लिए सुरक्षा, इक्षित कार्य करने या aaअच्छे और बुरे में भेद आदि के निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त करता है|
३. अहंकार: यह वह गुण है जिससे एक जीव अपने होने का आभास होता है, उसके अपने “मैं” का बोध होता है| अगर जीव से अहंकार हटा दिया जाए तों जीव को यह मालूम करना मुश्किल हो जायेगा कि वह क्या है और कौन है? यह अहंकार अगर सत्य हो वह आत्मज्ञान होता है, लेकिन यह अहंकार अगर असत्य हो तों भयंकर हो जाता है|

यह आठ तत्व ईश्वर की निम्न प्रकृति है| इन्हें दूसरे शब्दों में माया या सिर्फ प्रकृति के नाम से भी जाना जाता है| इन आठ मूल तत्वों के अलावा ईश्वर की उच्च शक्ति है, जिसे ऊपर के श्लोक में जीवभूत, अर्थात जीवन शक्ति के नाम से उल्लेखित किया गया है| इस अगर विस्तार में जाएँ को इस शक्ति का दूसरा नाम ब्रम्ह है| यह ब्रम्ह जीवन शक्ति है जो पुरे भगवान श्री कृष्ण के चारो ओर उसी प्रकार स्थित है जैसे पृथ्वी के चारो ओर गुरुत्व क्षेत्र स्थित होता है| यह ब्रम्ह पुरे ब्रम्हांड में जीवन शक्ति को धारण करता है | इस ब्रम्ह के धरातल पर ही जीवात्मा का निर्माण होता है जो शरीर को धारण करके एक जीव के रूप में जाना जाता है|
पुरे वेद, उपनिषद और पुराणों में इस ब्रम्ह को विभिन्न रूपों में वर्णित किया गया है| चूँकि ब्रम्ह ईश्वर का अभिन्न अंग है इसलिए ब्रम्ह और ईश्वर को कभी कभी पर्याय कहा जाता है|

माया और ब्रम्ह अपने आप में बहुत बड़े विषय हैं और एक लेख में इनका पूर्ण वर्णन संभव नहीं, हम प्रयास करेंगे कि इन विषयों पर अलग से लेख दे, लेकिन साधको से आग्रह है वह भी अलग से समय निकलकर इन विषयों का अध्ययन करें|
शब्दार्थ
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आपः = जल , द्रव
अनलः = अग्नि, उर्जा
खं = आकाश, निर्वात
अपरा = निन्म
पराम्‌ = उच्चतर
धार्यते = धारण करता/करते हैं