अध्याय7 श्लोक6,7,8 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 06-08

अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥

संधि विच्छेद

अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥

अनुवाद

मैं सम्पूर्ण जगत का निर्माता, पालनकर्ता एवं विनाशकर्ता हूँ ॥
हे धनंजय! [इस ब्रम्हांड में] मुझसे उच्चतर कुछ और नही। यह सम्पूर्ण जगत मुझमे उसी प्रकार गुथा हुआ है जैसे सूत्र(धागे) में मनियाँ गुंथी होती हैं॥
मैं जल में रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में तेज(प्रकाश) हूँ, सम्पूर्ण वेदों में ओंकार, आकाश में तरंग शब्द(ध्वनि) हूँ और पुरुषों में पुरुषत्व हूँ॥

व्याख्या

इसके पहले के दो श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी मूल प्रकृति माया और ब्रम्ह का वर्णन किया जिससे यहाँ चराचर जगत निर्मित है|

अब यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण अपने वास्तविकता का रहस्य स्पस्ट कर रहे हैं| भगवान ने स्पस्ट शब्दों में यह घोषित किया कि कि वह स्वयं इस ब्रम्हांड के निर्माता, पालनकर्ता और बिनाश्कर्ता है| इस श्रृष्टि में उनसे उच्चतर कुछ और नही और वह समपूर्ण जगत के ईश्वर(God) हैं| इसके आगे अपनी शक्तियों का विस्तार बताते हुए श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि हालाकि इस जगत में विभिन्न वस्तुएँ भिन्न गुणों को धारण किये हुए प्रतीत होती हैं परन्तु वह सभी गुण स्वयं ईश्वर की शक्ति से उत्पन्न और स्थित हैं| जल में रस से लेकर नक्षत्रों में प्रकाश, आकाश में शब्द और जीवों में चेतना| भगवान ने यह भी स्पस्ट किया कि समपूर्ण जगत में ध्वनि का मूल रूप और सभी वेदों में वर्णित पवित्र “ओम्” वह स्वयं है|

इस प्रकार विभिन्न रूपों में दृष्टिगोचर विश्व की सभी वस्तुएँ उनकी ही शक्ति रूप सूत्र में वैसे ही गुंथे हुए हैं जैसे धागे में मानिय गुंथी होती है|

सभी साधकों को यह सूचित कर दे कि ये श्लोक और इनके आगे के कई श्लोक, हमारे ग्रन्थ के सबसे महत्वपूर्ण श्लोकों में से हैं|ये श्लोकब्रम्हांड के स्वामि भगवान श्री कृष्ण के ईश्वरीय गुणों का वर्णन है| इन श्लोकों का मनन और जाप अपने आप में परम कल्याणकारी है| मैं सभी साधकों से निवेदन करता हूँ कि वे न सिर्फ इन श्लोकों का जाप करें बल्कि याद कर लें|