अध्याय7 श्लोक10 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 10

बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्‌ ।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्‌ ॥

संधि विच्छेद

बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्‌ ।
बुद्धिः बुद्धिमताम अस्मि तेजः तेजस्विनाम अहम्‌ ॥

अनुवाद

हे अर्जुन! मैं सम्पूर्ण चराचर की उत्पत्ति का बीज हूँ। (मैं) बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ॥

व्याख्या

पिछले श्लोक से आगे इन श्लोकों में भी भगवान श्री कृष्ण अपने ईश्वरीय गुणों का वर्णन कर रहे हैं| भगवान श्री कृष्ण ने स्पस्ट किया कि वह स्वयं इस श्रृष्टि की उत्पत्ति का श्रोत हैं| श्रृष्टि की सभी जीवात्माएं और प्रकृति में व्याप्त नाना प्रकार के की उर्जायें और वस्तुओं के गुण उनकी ही शक्ति से प्रकटित हुए हैं|

एक साधारण दृष्टि में किसी आम मनुष्य के लिए इस रहस्य को समझना थोडा कठिन हैं, क्योंकि हम अपने आस पास जो देखते हैं हजारों और लाखों स्तर के बदलाव का परिणाम है| हम शायद ही यह एहसास कर पाते हैं कि प्रकृति में स्थित करोडो प्रकार की वस्तुएँ वास्तव में कुछ मूल तत्वों से ही बने हैं| मूल तत्व विभिन्न रासायनिक, भौतिक और जैविक परिवर्तनों से होकर गुजरते हुए पदार्थों का रूप लेते हैं|
प्रकृति में सभी जीवित और अजीवित भगवान की दो मूल शक्तियों ब्रम्ह और माया से बने हैं| ब्रम्ह से जीवात्माएं और माया से प्रकृति के पदार्थ| ब्रम्ह और माया ईश्वर से उत्पन्न हुए है और इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण इस प्रकृति की सभी चराचर की उत्त्पत्ति का मूल श्रोत हैं|