अध्याय7 श्लोक12 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 12

ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्चये ।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥

संधि विच्छेद

ये च एव सात्विका भावः राजसा: तामसाः च ये
मत्त एव एति तान् विद्धि न तु अहं तेषु ते मयि ॥

अनुवाद

यह जान लो कि सत्व, रजस और तमस के गुण मुझसे ही उत्पन्न हुए हैं| ये [तीन गुण] मुझमे स्थिर हैं (मुझपर निर्भर हैं) मैं उनमे नहीं(उनपर निर्भर नहीं) |

व्याख्या

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण यह स्पस्ट कर रहे हैं कि प्रकृति के तीन गुण सत्व, रजस और तमस खुद भगवान श्री कृष्ण की शक्ति से उत्पन्न हुए हैं|
जैसा हम जानते हैं कि प्रकृति के सभी पदार्थों के गुण सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों से निर्धारित होते हैं| इस प्रकार इस प्रकृति में सभी जीवित और अजीवित पदार्थ इन तीन गुणों पर निर्भर हैं| लेकिन भगवान श्री कृष्ण इन तीन गुणों से परे हैं और इनसे स्वतन्त्र हैं| बल्कि चूँकि तीन गुण भगवान श्री कृष्ण से उत्पन्न हैं इसलिए इस ब्रम्हांड के सभी जीवित और अजीवित पदार्थ पूर्ण रूप से भगवान श्री कृष्ण पर निर्भर हैं| बिना ईश्वार की शक्ति के इस ब्रम्हांड में एक कण एक पल के लिए भी स्थित नहीं हो सकता|