अध्याय7 श्लोक13 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 7 : अध्यात्म योग

अ 07 : श 13

त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत्‌ ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम्‌ ॥

संधि विच्छेद

त्रिभिः गुणमयैः भावैः एभिः सर्वमिदं जगत्‌ ।
मोहितं न अभिजानाति मामेभ्यः परम् अव्ययम्‌ ॥

अनुवाद

तीन गुणों(सत्व, रजस और तमस) के प्रभाव से (के कारण) सर्म्पूर्ण जगत वशीभूत (मोहित) है, इसलिए मुझ अविनाशी [परमात्मा] जो इन गुणों से परे है को नहीं पहचानता |

व्याख्या

यह श्लोक श्रीमद भगवद गीता ही नहीं पुरे सनातन धर्म के एक महत्वपूर्ण श्लोकों में से एक है| यह धर्म के सबसे बड़े प्रश्न का स्पस्ट उत्तर देता है, वह प्रश्न है क्या हम ईश्वर को देख सकते हैं या ईश्वर को देखना कठिन क्यों हैं?
भगवान श्री कृष्ण ने इस रहस्य का स्पस्ट शब्दों में व्याख्या की है इस श्लोक में| भगवान ने कहा कि यह सम्पूर्ण मौलिक जगत तीन गुणों के प्रभाव में है| जीव का पूरा शरीर स्वयं प्राकृतिक तत्वों और प्रकृति के तीन गुणों का संगठन है| एक जीवित प्राणी जो कुछ भी करता है, जैसे देखना, सुनना, खाना-पीना सोना उसमे वह प्राकृतिक तत्वों और उसके परिवर्तन का ही अनुभव करता है| इस जगत में जो कुह भी होता है वह प्रकृति द्वारा होता है और प्रकृति ही उसे ग्रहण करती है| साधारण परिस्थितियों में एक जीव इस प्रकृति के परे कुछ अनुभव नहीं कर सकता|
परन्तु भगवान श्री कृष्ण प्रकृति और प्राकृतिक गुणों से परे हैं, इसलिए चाहकर भी ईश्वर के दर्शन नहीं कर सकता| मनुष्य ईश्वर के दर्शन तभी कर सकता है जब ईश्वर स्वयं अपनी माया को अधीन करके मौलिक शरीर धारण करते हैं और मनुष्यों के बीच आते हैं| इस पूरी प्रक्रिया को ही ईश्वर का अवतार कहा जाता है| मनुष्यों के बीच में आना, मनुष्यों के विश्वास को सुदृढ़ करना, अवतार का एक मुख्य लक्ष्य भी है| अध्याय ४:श्लोक ६ में भगवान ने इस तथ्य का वर्णन किया है, कि हालाकि वह इस सम्पूर्ण ब्रम्हांड के ईश्वर हैं, फिर भी मनुष्यों का कल्याण करने के लिए वह हर युग में मौलिक शरीर धारण करते हैं| अवतार के समय एक साधारण मनुष्य भी ईश्वर के दर्शन कर सकता है|

अवतार के अलावा साधारण मनुष्य शरीर में योग के द्वारा ईश्वर के दर्शन संभव हैं| परन्तु योग की साधना आसान नहीं| योग के अलावा भक्ति भी ईश्वर की प्राप्ति और ईश्वर के दर्शन का बहुत सरल और उत्तम मार्ग है| लेकिन भक्ति ऐसी चीज़ है जिसकी गणना संभव नहीं इसलिए यह बताना कठिन है कि किस प्रकार की भक्ति से ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं|