अध्याय8 श्लोक14 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 14

अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनीः ॥

संधि विच्छेद

अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्य अहं सुलभः पार्थ नित्य युक्तस्य योगिनीः ॥

अनुवाद

हे पार्थ! जो [मनुष्य] अनन्य भाव से (बिना विचलित हुए) निरंतर मेरा स्मरण करता है, मुझमे समर्पित उस योगी के लिए मुझे प्राप्त करना सुलभ है|

व्याख्या

वैसे तों मनुष्य कई विधियों से मोक्ष को प्राप्त कर सकता है, जैसे ज्ञान योग, कर्म योग, राज योग, सन्यास आदि| लेकिन भक्ति इन सभी विधियों से उत्तम है| इस तथ्य का वर्णन श्रीमद भगवद गीता में कई स्थानों पर किया गया है| इस श्लोक में न उस तथ्य का सुनिश्चित किया गया है बल्कि भक्ति योग दूसरे विधियों से क्यों उत्तम है इसका कारण भी स्पस्ट किया गया है|
भगवान श्री कृष्ण ने इस श्लोक में यह स्पस्ट किया कि भक्ति का मार्ग सुलभ और अत्यंत प्रभावशाली है| बल्कि सत्य तों यह है कि भक्ति ही योग का आधार है, बिना भक्ति के तों ज्ञान योग, कर्म योग या राज योग की साधना भी सफल नहीं हो सकती| भक्ति योग का एक और लाभ यह है कि भक्ति से न सिर्फ मोक्ष की प्राप्ति होती है बल्कि भक्ति ही एक ऐसा मार्ग है जिसके द्वारा भगवान श्री कृष्ण के धाम में निवास करता है और निरंतर उनके दर्शन प्राप्त करता है| मोक्ष प्राप्ति के कई मार्ग हो सकते हैं लेकिन ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग सिर्फ भक्ति ही है, दूसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया है

“भक्त्या माम अभिजानाति”
एक भक्त ही मुझे [पूर्णता से ] जान सकता है|