अध्याय8 श्लोक15 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 15

मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्‌ ।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ॥

संधि विच्छेद

माम उपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयम् अशाश्वतम् ।
न अप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ॥

अनुवाद

मुझे प्राप्त करने के बाद वे महात्मा क्षणभंगुर और दुखों का घर [इस संसार] में पुनः जन्म नहीं लेते [क्योंकि मुझे प्राप्त करके] वे परम पद पर पहुंच जाते हैं|

व्याख्या

पिछले कई श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने यह वर्णित किया कि कैसे एक मनुष्य उन तक(श्री कृष्ण तक) पहुँच सकता है| इस श्लोक में श्री कृष्ण उस परम धाम का वर्णन कर रहे हैं |भगवान श्री कृष्ण का धाम इस ब्रम्हांड में सबसे उत्तम धाम है| वहाँ पहुंचकर एक जीवात्मा जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है और अनंत काल के लिए श्री कृष्ण के पवित्र धाम में निवास करता है और परम आनंद का भागी बनता है|

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने इस संसार की क्षणभंगुरता का भी वर्णन किया है| इस मृत्युलोक में कुछ भी स्थिर नहीं| लेकिन उससे भी बड़ी बात यह कि यह संसार दुखों से पूर्ण है| कोई मनुष्य कितना भी प्रयास कर ले वह दुखों से बच नहीं सकता| इसलिए प्रत्येक प्राणी को भगवान श्री कृष्ण की शरण में आने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि उनकी भक्ति ही उनके धाम तक पहुँचने का सर्वोत्तम उपाय है|