अध्याय8 श्लोक16 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 16

आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन ।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥

संधि विच्छेद

आब्रह्म भुवनात् लोकाः पुनरावर्तिनः अर्जुन ।
माम उपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते ॥

अनुवाद

हे अर्जुन ! ब्रम्ह लोक से लेकर निम्न स्तर के सभी लोकों में निर्माण और प्रलय [जन्म और मृत्यु] की पुनरावृति होती है| परन्तु हे कुन्तीपुत्र! मुझे प्राप्त करने के बाद [किसी जीव का] का पुनर्जन्म नहीं होता (जन्म और मृत्यु की पुनरावृति नहीं होती) |

व्याख्या

यह श्लोक आध्यात्म के लिए तों अति महत्वपूर्ण है ही लेकिन विज्ञान के लिए भी अति महत्वपूर्ण है| इस श्लोक में ब्रम्हांड के निर्माण चक्र का वर्णन है| इसके अलावा यह समय की सापेक्षिता और समय के शुन्य गति जैसे गुढी वैज्ञानिक सिद्धांत को प्रतिपादित करता है(इस विषय पर अलग से लेख दिया जायेगा)|
भगवान श्री कृष्ण ने स्पस्ट किया कि ब्रम्ह्लोक से लेकर निम्न स्तर के सभी लोक निर्माण और प्रलय के चक्र से गुजरते हैं| इन लोकों में रहने वाले प्राणी भी इस प्रकार जन्म और मृत्यु के चक्र को प्राप्त होते हैं| लेकिन भगवान श्री कृष्ण का लोक ऐसा लोक है जो अनंत है और जो श्रृष्टि निर्माण के चक्र से अलग रहता है| इसलिए श्री कृष्ण के लोक में जाने वाले जीव कभी मृत्यु जैसी भयावह परिस्थिति से नहीं गुजरते |

नोट: इस श्लोक को कुछ दूसरे श्लोकों के साथ मिलकर पढने से गुढ़ विषय, जैसे समय की सापेक्षिता,समय का स्थिर होना अर्थात समय की गति का शुन्य होना, विभिन्न लोकों पर भिन्न भिन्न जीवन अवधि की व्याख्या की जा सकती है| उनका लेख के रूप में अलग से वर्णन किया जायेगा|