अध्याय8 श्लोक17 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 17

सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः ।
रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः ॥

संधि विच्छेद

सहस्र युग पर्यंतम् अहह यत ब्रह्मणः विदुः ।
रात्रिं युग सहस्र अन्तां ते अहह-रात्रः विदः जनाः ॥

अनुवाद

[समय के] तत्वों (या विज्ञान) को जानने वाले यह जानते हैं कि ब्रम्हा का एक दिन [पृथ्वी के] सहस्त्र युगों(चार युग सम्मिल्लित) की अवधि वाला और ब्रम्हा का एक रात [भी] [पृथ्वी के] सहस्त्र युगों(चार युग सम्मिल्लित) की अवधि वाला होता है|

व्याख्या

यह श्रीमद भगवद गीता के उन श्लोकों में से एक है जिसमे विज्ञान के कई महत्वपूर्ण सिधान्तों का वर्णन है| जैसा हम जानते हैं कि वर्तमान में आईनस्टाइन द्वारा प्रस्तावित सापेक्षिता क सिद्धांत विज्ञान के सबसे अदभुत सिधान्तों में से एक है| सामान्य भौतिक सिधान्तों के भिन्न जाते हुए आईनस्टाइन ने यह सिद्धांत दिया कि समय कोई नियत माप नहीं बल्कि एक आयाम है| बल्कि यह पूरा ब्रम्हांड आकाश और समय के निर्देशांक(coordinates) के स्थित है| इसी सिद्धांत के अंतर्गत आईनस्टाइन ने twin paradox का उदहारण प्रस्तुत किया जिसमे यह बताया कि विभिन्न गति यह भौतिक निकायों के परिवर्तन होने से समय के माप भिन्न हो जाता है|
इस श्लोक में न सिर्फ उस सिद्धांत का वर्णन किया गया है बल्कि ब्रम्ह लोक का पृथ्वी के समय की तुलना में समय की माप की गणना दी गई है| ब्रम्ह लोक एक एक दिन और रात पृथ्वी के चार युगों के सम्मिलित योग के हज़ार गुना होती है|
कई विद्वानों ने सभी सनातन साहित्यों का अध्ययन किया है और वर्षों में इस गणना को पस्तुत किया है, उनमे से सबसे मान्य गणना जो महान संत और ज्ञानी श्री रामानुजाचार्य द्वारा भी प्रस्तावित है इस प्रकार है|


कलि युग — 432,000 मानव वर्ष
द्वापर युग — 864,000 मानव वर्ष
त्रेता य युग — 1,296,000 मानव वर्ष
क्रेता युग — 1,728,000 मानव वर्ष
चार युग = 1 महायुग = 4,320,000 मानव वर्ष.
71 महायुग = 1 मन्वन्तर = 308,448,000 मानव वर्ष
14 मन्वन्तर = 1 कल्प = 4,320,000,000 मानव वर्ष
2 कल्प = ब्रम्हा का एक दिन और रात = 8,640,000,000 मानव वर्ष
360 कल्प = 1 ब्रम्हा वर्ष = 3,110,400,000,000 मानव वर्ष
100 ब्रम्हा वर्ष = 1 ब्रम्हा की जीवन अवधि = 311,040,000,000,000 मानव वर्ष
ऊपर की गणना के अनुसार ब्रम्हा भी अजर अमर नहीं बल्कि उनकी जीवन आयु भी सीमित है, लेकिन वह अवधि पृथ्वी के समय के अनुसार इतनी बड़ी है कि वह अमर के समान ही है|


वैसे कुछ दूसरे विद्वानों ने दूसरी गणना भी दी है| श्री योगानंद ने चार युगों को भिन्न रूप में विभाजित किया है | उनके अनुसार युग अनुयुग में विभाजित होते हैं | ये अनुयुग पुनः24000 सालों में एक चक्र पूरा करते हैं| एक अर्ध चक्र १२००० सालों को होता है जो सीधे और उलटे क्रम में बढते हुए एक २४००० सालों का एक क्रम पूरा होता है | यह विषय अपने आप में एक विस्तृत विषय है और इसके साथ विज्ञान के कई और विषय जुड़े हैं, जिसकी चर्चा अलग से की जायेगी|