अध्याय8 श्लोक18 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 18

अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ॥

संधि विच्छेद

अव्यक्तत् व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्ति अहह आगमे ।
रात्रि आगमे प्रलीयन्ते तत्र एव अव्यक्त संज्ञके ॥

अनुवाद

ब्रम्हा के दिन के आगमन पर [ब्रम्हांड के] सभी व्यक्त [पदार्थ](manifested entities) अव्यक्त(अदृश्य) से उत्पन्न होते हैं और ब्रम्हा के रात्रि के आगमन पर [सभी व्यक्त पदार्थ] पुनः अव्यक्त (अदृश्य उर्जा) में विलीन हो जाते हैं|

व्याख्या

पूर्व के कई श्लोकों की भांति यह श्लोक भी विज्ञान के दृष्टिकोण से अति महवपूर्ण श्लोक है| यह श्लोक न सिर्फ ब्रम्हांड के निर्माण के गंभीर विषय का उत्तर देता है बल्कि भौतिक शास्त्र के एक अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत, “द्रव्यमान और उर्जा संरक्षण का नियम” को प्रतिपादित करता है| सारांश में इस श्लोक के तथ्यों को निम्न रूप से लिखा जा सकता है
ब्रम्हांड दो स्वरूपों में स्थित होता है, व्यक्त(material) और अव्यक्त (non-mater)
ब्रम्हांड का कुल द्रव्यमान और उर्जा हमेशा नियत होती है| सिद्धांत रूप में ब्रम्हांड को न तों बनाया जा सकता है और न ही इसको नष्ट किया जा सकता है हाँ इसके स्वरूप में परिवर्तन होता है|
ब्रम्हांड व्यक्त से अव्यक्त और अव्यक्त से व्यक्त के चक्र में परिवर्तित होता है|
द्रव्यमान उर्जा में परिवर्तित हो सकता है और उर्जा भी द्रयमान में परिवर्तित हो सकता है| कुल मिलकर द्रव्यमान और उर्जा का माप नियत होता है|

ऊपर के चार बिन्दु ब्रम्हांड के निर्माण की अभूतपूर्व व्याख्या करते हैं| इसके अनुसार ब्राम्हण किसी शुन्य से उत्पन्न नहीं हुआ और न ही इतने बड़े ब्रम्हांड को नष्ट करके शुन्य किया जा सकता है| लेकिन ब्रम्हांड का स्वरूप परिवर्तित होता है| यह भातिक जगत जो विभिन्न रूपों में दृष्टिगोचर है वह ब्रम्हा के दिन(अर्ध कल्प) के आरम्भ पर अव्यक्त उर्जा से उत्पन्न होती है | ब्रम्हा के दिन की समाप्ति पर सभी व्यक्त पदार्थ अव्यक्त रूप में परिवर्तित हो जाते हैं| व्यक्त से अव्यक्त में परिवर्तित होने की इस प्रक्रिया को ही प्रलय कहा जाता है| ब्रम्हांड निर्माण और प्रलय के यह चक्र एक कल्प में पूरा होता है| यह चक्र इसी प्रकार चलता रहता है|
जैसा पहले श्लोक में बताया गया ब्रम्हा का एक दिन और रात जिसे एक कल्प कहा जाता है 4,320,000,000 human years = 4..3 billion years के बराबर होता है| ब्रम्हा के एक साल ३६० दिन और रात के बराबर होते हैं इस प्रकार ब्रम्हा के एक वर्ष में ब्रम्हांड निर्माण और प्रलय की प्रक्रिया 360 बार होती है| ब्रम्हा की कुल आयु 100 ब्रम्हा वर्षों के बराबर होता है| इस प्रकार ब्रम्हा के जीवन काल में ब्रम्हांड निर्माण और प्रलय की प्रक्रिया 360X 100 बार होती है| उसके बाद ब्रम्हा का भी अन्त होता है और फिर नए ब्रम्हा के साथ यह पूरी प्रक्रिया फिर से शुरू होती है|

हमें ध्यान रहे की यह परिवर्तन की पूरी प्रक्रिया सिर्फ मौलिक लोकों में ही होती है| अलौकिक लोक समय की परिवर्तन के बाहर हैं | अलौकिक लोकों को प्राप्त करने की प्रक्रिया ही मोक्ष कहलाती है|
ऊपर में दिया गया विवरण अक्षरों में बहुत सामान्य लगता है लेकिन अगर गणना करें तों यह एक बहुत बड़े समय अवधि का स्पस्ट विवरण है|

शब्दार्थ
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व्यक्त = दृष्टिगोचर वस्तुएँ
अव्यक्त = अदृश्य पदार्थ जैसे, उर्जा, तरंग आदि
अहह = दिन
सर्व = सभी, सब
आगम = आना
प्रभवति = होना, उत्पन्न होना, प्रकट होना
प्रभवन्ति = प्रभवति का बहु वचन
प्रलीयते = विलीन होते हैं
संज्ञके = विदित