अध्याय8 श्लोक23 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 23

यत्र काले त्वनावत्तिमावृत्तिं चैव योगिनः ।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥

संधि विच्छेद

यत्र काले तु अनावृत्तिम् आवृत्तिं च एव योगिनः ।
प्रयाता यान्ति तं कालं वक्ष्यामि भरतर्षभ ॥

अनुवाद

हे भारतवंशियों में श्रेष्ठ(अर्जुन)! [अब] मैं तुम्हे वह [रहस्य] बताता हूँ कि किस काल में शरीर त्यागने वाला(किस मार्ग को जाने वाला) मनुष्य [इस लोक में] वापस आता है और किस काल में शरीर त्यागने वाला मनुष्य [इस लोक में] वापस नहीं आता|

व्याख्या

अगले श्लोक से प्रारंभ करके तीन श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने एक अन्य अति महत्वपूर्ण सिद्धांत का वर्णन किया है|

जीवन में वैसे तों कुछ भी आकस्मिक नहीं होता है| जीवन की हर एक घटना का हमारे चरित्र, हमारे द्वारा किये गए कर्मो से कोई न कोई सम्बन्ध होता है| लेकिन मृत्यु तों किसी भी हाल में आकस्मिक घटना नहीं| मृत्यु तों एक बड़े परिवर्तन का बिंदु और इसका आकस्मिक होना संभव नहीं|
अगले दो श्लोको में भगवान श्री कृष्ण ने मृत्यु के समय और उसके परिणामस्वरूप अगले जीवन की रुपरेखा का सम्बन्ध बताया| एक दिन से प्रारंभ करके पुरे वर्ष के समय का विभाजन करके श्री कृष्ण अग्नि या प्रकाश के गुढ़ सम्बन्ध का वर्णन किया|

हालाकि श्लोक में काल का वर्णन है लेकिन सनातन धर्म के सभी तीन मुख्य विद्वान श्री आदि शंकराचार्य, श्री माधवाचार्य और श्री रामानुजाचार्य इस मत से सहमत है कि वास्तव में यह अध्यात्मिक मार्ग का द्योतक है| तीनो विद्वानों ने इस बात पर भी सहमति जताई की दिन, मास और वर्ष के कुछ खास समय किसी न किसी देवता को समर्पित हैं या कोई न कोई देवता उस समय का इष्ट देवता होता है| इस प्रकार इन समयों में शरीर त्यागने वाले मनुष्यों के उस समय के देवता से भी सम्बन्ध स्थापित होता है| श्री रामानुजाचार्य ने इन विभाजनो को पञ्च अग्नि या पञ्च प्रकाश के सिद्धांत का नाम दिया|

शब्दार्थ
आवृति = चक्र, बार बार होना(frequency), repeat
अनावृति = no repeat, बार बार नहीं होना
प्रयातः = जाने वाला
यान्ति = जाना
काल = समय, मार्ग
वक्ष्यामि = बताता हूँ, कहता हूँ