अध्याय8 श्लोक26 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 26

शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते ।
एकया यात्यनावृत्तिम् अन्ययावर्तते पुनः ॥

संधि विच्छेद

शुक्ल कृष्णे गती हि एते जगतः शाश्वते मते ।
एकया याति अनावृतिम् अन्यया आवर्ते पुनः ॥

अनुवाद

निश्चय ही शुक्ल और कृष्ण [में प्रयाण] के ये दो मार्ग शास्वत हैं| [लेकिन] एक मार्ग(शुक्ल) से जाने वाला मनुष्य[इस मृत्यु लोक में] वापस नहीं आता और दूसरे मार्ग (अंधकार) से जाने वाला मनुष्य [इस लोक में] पुनः वापस आता है|

व्याख्या

इसके पहले के श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने दो प्रकार के मार्गो का वर्णन किया जिसमे पांच प्रकार की ज्योति का उल्लेख किया| इस श्लोक में उन पांच प्रकार की ज्योति को दो वर्गों में वर्गीकृत करके भगवान श्री कृष्ण सारांश बता रहे हैं| इस श्लोक में पिछले श्लोकों में वर्णित अग्नि,प्रकाश,दिवस(दिन), शुक्ल पक्ष तथा उत्तरायण को शुक्ल शब्द से संबोधित किया गया है तथा धूम्र(अंधकार),चन्द्र ज्योति,रात्रि,कृष्ण पक्ष तथा दक्षिणायन को कृष्ण से संबोधित किया गया है| शुक्ल के मार्ग में जाने वाला मनुष्य जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है, उसे इस मृत्यु लोक में वापस नहीं आना पडता| जबकि कृष्ण (धूम्र या ज्योति) के मार्ग में जाने वाले मनुष्य को पुनः इस मृत्यु लोक में वापस आना पडता है|
हालाकि इन सभी श्लोको में दिन से लेकर वर्ष तक के विभिन्न समयों का वर्णन है लेकिन यह वास्तव में यह अध्यात्मिक मार्ग का द्योतक हैं| सनातन धर्म के तीन मुख्य विद्वानों श्री आदि शंकराचार्य, श्री रामानुजाचार्य और श्री माधवाचार्य ने इसपर सहमति जताई है| श्लोकों में उद्धृत समय के अंतराल उस समय अंतराल के इष्ट देवता को इंगित करते हैं|

आदि शंकराचार्य ने इससे भी आगे व्याख्या करते हुए यह मत रखा है, यह दो मार्ग ज्ञान और अज्ञानता का सूचक हैं| शुक्ल, सूर्य ज्योति अर्थात ज्ञान का सूचक है, कृष्ण पक्ष चंद्र ज्योति अर्थात भौतिक जगत के मोह के सूचक हैं| इस प्रकार ऊपर के श्लोक के व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है| ओ मनुष्य ज्ञान के मार्ग का अनुसरण करता है वह इस भौतिक जगत में बंधन से मुक्त हो जाता है| जो मनुष्य भौतिक जगत के साथ मोह रखता है उसे इस भौतिक जगत में पुनः जन्म लेना पडता है| यह व्याख्या वेदों के मत से बहुत मेल रखता है|