अध्याय8 श्लोक28 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 28

वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्‌ ।
अत्येत तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्‌ ॥

संधि विच्छेद

वेदेषु यज्ञेषु तपःसु च एव दानेषु यत् पुण्य फलं प्रदिष्टम्‌ ।
अत्येत तत् सर्वं इदं विदित्वा योगी परं स्थानम् उपैति च आद्यम्‌ ॥

अनुवाद

वेदों के अध्ययन, यज्ञ, तप और दान से जो पुण्य प्राप्त होता है, उनसे कहीं ज्यादा पुण्य मेरी शिक्षाओं का [हृदय से] पालन करने से प्राप्त होता है| यह जानकर एक योगी [मुझमे समर्पित होकर] मेरी शिक्षाओं का पालन करते हुए परम पद को प्राप्त करता है|

व्याख्या

इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने एक बार फिर भक्ति योग की श्रेष्ठता का वर्णन तों किया ही है लेकिन उसके साथ ही श्री कृष्ण ने इस श्लोक में श्रीमद भगवद गीता की शिक्षाओं की श्रेष्ठता का भी उल्लेख किया है|
एक मनुष्य को यज्ञ, तप, दान या वेदों के अध्ययन से जो पुण्य प्राप्त होता है उससे कहीं अधिक पुण्य एक मनुष्य को श्रीमद भगवद गीता की शिक्षाओं का पालन करने से होता है| श्लोक में “तत् सर्वं इदं विदित्वा” वाक्यांश का प्रयोग है जिसका अर्थ है “इन सबको जानकर”, अर्थात श्रीमद भगवद गीता में वर्णित तत्व को जानकर| इसी श्लोक में भगवान में श्री कृष्ण ने यह भी स्पस्ट कि कि श्रीमद भगवद गीता का श्रधापूर्वक पालन करने से मनुष्य मुक्ति प्राप्त करता है, परम पद प्राप्त करता है| श्रीमद भगवद गीता अतः मनुष्य के लिए मुक्ति का साधन है