अध्याय8 श्लोक6 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 06

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्‌ ।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥

संधि विच्छेद

यं यं वापि स्मरन् भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्‌ ।
तं तं एव इति कौन्तेय सदा तद् भाव भावितः ॥

अनुवाद

हे कुन्तीपुत्र (अर्जुन)!अपने अंतिम समय में मनुष्य जिस भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्यागता है अगले जन्म में वह निःसंदेह उसी भाव को प्राप्त करता है|

व्याख्या

यह श्लोक इसके पहले के श्लोक में वर्णित विषय की ही आगे चर्चा है| पिछले श्लोक में भगवान ने यह वर्णित किया कि मनुष्य के पास अंतिम अवसर होता है शरीर त्यागने के समय| अगर कोई मनुष्य अपने अंतिम समय में भगवान श्री कृष्ण की भक्ति को प्राप्त कर लेता है वह भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त कर लेता है|
लेकिन यह सिद्धांत हर दूसरे भाव के लिए भी लागु होता है|
अपने अंतिम समय में मनुष्य जिस भाव या मानसिक अवस्था में अपना शरीर त्यागता है अगले जन्म में वह उसी मानसिक अवस्था के साथ जन्म लेता है| अगर वह भक्ती की अवस्था में शरीर त्यागता है तों अगल जन्म में वह भक्ति के वातावरण प्राप्त करता है| अगर वह घृणा, घमंड या क्रोध की अवस्था में शरीर त्यागता है तों अगले जन्म में घृणा, घमंड या क्रोध का ही वातावरण प्राप्त करता है|
इस प्रकार अगले जन्म की अवस्थाओ को प्रभावित करने वाले कई कारणों में मनुष्य के अंतिम समय में उसका भाव भी एक प्रभावी कारण है|