अध्याय8 श्लोक7 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8 : अक्षर ब्रम्ह योग

अ 08 : श 07

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च ।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ ॥

संधि विच्छेद

तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम् अनुस्मर युद्ध च ।
मयि अर्पित मनः बुद्धिः माम् एव एस्यासि असंशम्‌ ॥

अनुवाद

इसलिए हे अर्जुन! [तुम] हर समय मेरा ही स्मरण करो युद्ध करो| क्योंकि मन और बुद्धि द्वारा मुझमे समर्पित होकर तुम[अगर युद्ध में अगर वीरगति को प्राप्त हुए तब भी] हर हाल में मुझे प्राप्त करोगे |

व्याख्या

पिछले दो श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि जीवन का अंतिम समय मनुष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है| मनुष्य जिस भाव से शरीर त्यागता है अगले जन्म में वह उसी भाव या अवस्था को प्राप्त करता है| अंतिम समय में मनुष्य अगर ईश्वर का एकाकी भाव लिए शरीर को त्यागता है तों वह ईश्वर को प्राप्त करता है|

इसलिए भगवान अर्जुन को कहते हैं “तुम अपने मन में मुझे धारण करते हुए युद्ध के अपने कर्तव्य का पालन करो, क्योंकि अगर युद्ध में मृत्यु भी हुई तब भी तुम मुझे प्राप्त कर लोगे” |
हालाकि यह उत्तर अर्जुन के प्रश्न के जवाब में अर्जुन को दिया गया, लेकिन यह सबके ऊपर लागु होता है| हर एक मनुष्य को चाहे वह कोई कार्य कर रहा हो, ईश्वर को अपने मन में धारण करके रखना चाहिए ताकि अगर किसी को अचानक मृत्यु आ भी जाए तब भी वह हर हाल में भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त होगा| ईश्वर की भक्ति के लिए हमे किसी मुहूर्त का इन्तेजार नहीं करना चाहिए| यह जीवन अति क्षणभंगुर है|