अध्याय9 श्लोक13,14 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 13-14

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम्‌ ॥
सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढ़व्रताः ।
नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥

संधि विच्छेद

महात्मानः तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिम् आश्रिताः ।
भजन्ति अनन्य मनसः ज्ञात्वा भूत आदिम अव्ययम् ॥
सततं कीर्तयन्तः मां यतन्तः च दृढ़ व्रताः ।
नमस्यन्तः च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥

अनुवाद

परन्तु हे पार्थ(अर्जुन)! मै सभी जीवों का सनातन श्रोत हूँ यह जानकर सज्जन मनुष्य (महात्माजन) मेरी निरंतर भक्ति करते हुए मेरी दैवीय प्रकृति में आश्रित होते हैं| [ईश्वर भक्ति के लिए] दृढ निश्चय से युक्त वैसे भक्त [हर परिस्थिति में]सदा [मेरे नाम का] का जाप(कीर्तन) करते हैं,

व्याख्या

इसके पहले के दो श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने बताया की इस संसार में कई ऐसे मनुष्य होते हैं जिनके सामने अगर ईश्वर स्वयं आकर खड़ा हो जाएँ तब भी वह शंका करने का कोई कारण खोज लेते हैं| उदहारण देते हुए उन्होंने बताया कि जब वह अवतार लेकर मनुष्य के रूप में इस धरती पर आते हैं तों वैसे मनुष्य उनको(श्री कृष्ण को) साधारण मनुष्य समझकर उनकी(श्री कृष्ण की) अवहेलना करते हैं|
फिर इन दो श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण यह बता रहे हैं कि वही दूसरी तरह ऐसे मनुष्य होते हैं कि विपरीत परिस्थितियों में भी ईश्वर में विश्वास करके उनकी भक्ति करते हैं| भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि ऐसे मनुष्य श्री कृष्ण की दैवीय प्रकृति को प्राप्त होते हैं|
दैवीय प्रकृति एक व्यापक शब्द है लेकिन एक साधारण रूप से यह समझा जा सकता है कि जितने भी अच्छे गुण जैसे सभी जीवों पर दया, क्षमा, सुचिता,करुणा, परमार्थ की भावना, सेवा का भाव आदि दैवीय प्रकृति हैं|
इस प्रकार इन दो श्लोकों से स्वतः ही सिद्ध हो जाता है कि ईश्वर की भक्ति से मनुष्य में दैवीय गुणों का प्रादुर्भाव होता है| ईश्वर की भक्ति करने वाला मनुष्य स्वभाव से ही मधुर, दयावान, क्षमाशील और सभी जीवों पर दया करने वाला होता है| उसके मन में सदा आनंद का भाव रहता है|

दैवीय गुणों के विपरीत जो गुण होते हैं उन्हें राक्षसी गुण कहा जाता है अतः इस तर्क से यह भी सिद्ध होता है कि ईश्वर से विमुख मनुष्यों में अहंकार, क्रोध, लोभ, वासना आदि गुणों के आने की संभावना अधिक होती है|
अगर इस तर्क को और भी आगे बढ़ाएं तों इससे यह भी सिद्ध होता है किईश्वर की भक्ति से अहंकार, क्रोध, लोभ, वासना आदि दुर्गुणों का नाश होता है|