अध्याय9 श्लोक16,17 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 16-17

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्‌ ।
मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्‌ ॥
पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।
वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च ॥

संधि विच्छेद

अहं क्रतुः अहं यज्ञः स्वधा अहम् अहम् औषधम्‌ ।
मंत्रः अहम् अहम् एव अज्यम अहम् अग्निः अहम् हुतम्‌ ॥
पिता अहम् अस्य जगतः माता धाता पितामहः ।
वेद्यं पवित्रम् ओङ्कार ऋक् साम यजुः एव च ॥

अनुवाद

अनुष्ठान(क्रतु) मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ| मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवन भी मैं ही हूँ॥16॥ इस जगत का पिता मै हूँ,माता धाता(धारण करने वाला) और पितामह मै हूँ| [सबके] जानने योग्य पवित्र ओम् मैं हूँ और ऋगवेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं हूँ| ॥17॥

व्याख्या

इसके पहले के श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अपने एक और अनेक होने के रहस्य का वर्णन किया| यह पूरा ब्रम्हांड श्री कृष्ण स्वयं ही हैं अतः इस प्रकार इस पुरे ब्रम्हांड में सिर्फ और सिर्फ एक ही पूर्ण इकाई है और वह है स्वयं श्री कृष्ण| लेकिन इस तथ्य का दूसरा पहलू यह कि ब्रम्हांड कई छोटे और बड़े इकाईओं से मिलकर बना है| हम अपने जीवन में जो कुछ भी छोटी बड़ी इकाईयां देखते हैं वह एक बड़े इकाई के छोटे भाग हैं|

ऊपर के दो श्लोकों में भगवान ने श्री कृष्ण ने उसी तथ्य को उदहारण के साथ वर्णित किया है| एक यज्ञ का उदहारण देते हुए श्री कृष्ण ने स्पस्ट किया कि यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले स्वधा , औषधि,मंत्र और अग्नि स्वयं श्री कृष्ण ही हैं| यज्ञ में प्रयुक्त होने मन्त्रों के श्रोत वेद और ओम् वह स्वयं हैं| इसके साथ ही यज्ञ भी वह स्वयं है| अतः श्री कृष्ण स्वयं हर वस्तु और हर दिशा में स्वयं ही है| तात्पर्य यह कि इस पुरे ब्रम्हांड में व्याप्त विभीन्नता वास्तव में एक ही श्रोत से निर्मित है| अतः एकता और अनेकता एक ही तथ्य के दो पहलू है|