अध्याय9 श्लोक25 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 25

यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः ।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्‌ ॥

संधि विच्छेद

यान्ति देवव्रता देवान् पित्रृन् यान्ति पितृव्रताः ।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मत् याजिनः अपि माम्‌ ॥

अनुवाद

देवताओं को पूजने वाले [अगले जन्म में] देवताओं के लोक(देवलोक) में जाते हैं, पितरों को पूजने वाले [अगले जन्म में] पितरों के लोक(पितृलोक) में जाते हैं, लौकिक जीवों की पूजा करने वाले [मनुष्य] [अगले जन्म में] उन लौकिक जीवों के बीच जन्म लेते हैं ओर मुझे पूजने वाले भक्त मेरे लोक में आते हैं|

व्याख्या

ऊपर का श्लोक साधना की विस्तृत संभावनाओं के विषय पर एक अति महत्वपूर्ण श्लोक है| इस एक श्लोक में साधना अथवा पूजा के गुढ़ सिधान्तों का वर्णन हो जाता है|

ऊपर के श्लोक में भगवान ने भिन्न भिन्न साधना पद्धति के भिन्न भिन्न परिणाम का वर्णन किया है| जो मनुष्य जिस जिस निकाय की साधना करते हैं वह उसी निकाय के बीच में जन्म लेते हैं| देवताओं की साधना करने वाले मनुष्य अगले जन्म में देवताओं के बीच अर्थात देव लोक में जन्म लेते हैं| अपने पितरों की पूजा करने वाले मनुष्य अगले जन्म में पितृ लोक में जन्म लेते हैं जहाँ वह अपने पूर्वजो से मिलते हैं|

ओर जो मनुष्य श्री कृष्ण की साधना करते हैं वह श्री कृष्ण के धाम वैकुण्ठ या गोलोक में जाते हैं| यह लोक सभी लोकों में सबसे उत्तम ओर अलौकिक है अर्थात यह जन्म ओर मृत्यु के परे हैं|

यह तीन लक्ष्य तों स्पस्ट रूप से वर्णित है लेकिन सबसे आश्चर्य का उल्लेख श्लोक में तीसरे भाग में है जिसमे भगवान श्री कृष्ण ने "भूत" शब्द का उल्लेख किया है| जिसका शाब्दिक अर्थ होता है "जीव" | अर्थात एक मनुष्य किसी भी जीव की पूजा कर सकता है,लेकिन परिणामस्वरूप उसे फिर उसी जीव के बीच अर्थात उसी जीव के रूप में जन्म लेना पड़ेगा|

कुछ विद्वानों ने "भूत" शब्द का अर्थ भूत-प्रेत से लगाया है,जिसे मैं उचित नहीं मानता क्योंकि श्रीमद भगवद गीता ओर दूसरे शास्त्रों में संस्कृत "भूत" का अर्थ जीव है|

उदहारण के लिए

अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥

हे अर्जुन! मैं सभी जीवों के हृदय में स्थित आत्मा हूँ| तथा सभी जीवो का आदि(आरम्भ), मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥

ऊपर के श्लोक के लिए श्री माधवाचार्य के अनुवाद से मैं सहमत हूँ

They who worship the gods go to the gods and those who worship the ancestors go to the ancestors and those who worship the elemental beings go to the elemental beings, but those who worship Me come to Me alone.
--English Translation of Shri Madhavacharya bhashya

ऊपर के श्लोक से अतः एक अति महत्वपूर्ण सिद्धांत का प्रतिपादन होता है कि साधना या पूजा किसी की भी की जा सकती है यहाँ तक की अपने से निन्म जीव की भी| लेकिन साधना के फलस्वरूप मानुष को उसी जीव के बीच में जन्म लेना पड़ेगा|

इस प्रकार इस श्लोक के साधना या पूजा के सार्वभौमिक स्वरूप का वर्णन होता है|