अध्याय9 श्लोक26 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 26

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥

संधि विच्छेद

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।
तत् अहं भक्ति उपहृतम् अश्नामि प्रयत् आत्मनः ॥

अनुवाद

कोई [भक्त] प्रेम और भक्तिपूर्वक मुझे [सिर्फ] एक पत्र(पत्ता), पुष्प(फूल), फल या जल भी अर्पित करता है तो मैं उसे प्रीतिपूर्वक स्वीकार करता हूँ|

व्याख्या

वैसे तों श्रीमद भगवद गीता के सभी श्लोक अनमोल है लेकिन यह श्लोक भक्तों के लिए सबसे सुंदर श्लोकों में से एक है| इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह पूर्ण रूप से स्पस्ट कर दिया कि ईश्वर की साधना के लिए किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं, बल्कि ईश्वर के लिए पवित्र भक्ति साधना के लिए पर्याप्त है|

एक भक्त मनुष्य अपनी शक्ति के अनुसार साधना करें, क्षमता के अनुसार शास्त्रों का अध्ययन करे,ईश्वर की लीलाओं का मनन, श्रवण करते यह अति उत्तम बात है| लेकिन अगर एक मनुष्य इसमे से कुछ भी नही कर पाता तब भी यह निराशा का कारण नहीं|

वासुदेव, जो सम्पूर्ण जगत के स्वामि हैं, परम दयालु एवं कृपानिधान हैं | उस परमेश्वर के लिए भक्ति कोई व्यापार नही है | अगर आवश्यकता है तो शुद्ध भक्ति की | निर्मल हृदय से जो भी भक्त उस परमेश्वर कों एक पत्ता, एक फूल भी भेट करता है, तो परमेश्वर उस भक्त की भक्ति कों स्वीकार करते हैं|