अध्याय9 श्लोक32 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 32

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु पापयोनयः ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्‌ ॥

संधि विच्छेद

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु पापयोनयः ।
स्त्रियः वैश्याः तथा शूद्राः ते अपि यान्ति परां गतिम्‌ ॥

अनुवाद

हे पार्थ! कोई भी मनुष्य चाहे [पुरुष या] स्त्री, वैश्य या शुद्र अथवा पापी के घर में ही क्यों न जन्मा हो, अगर मेरी शरण में आता है तो परम गति(मोक्ष) को प्राप्त करता है|

व्याख्या

श्लोक #२९ से शुरू हुए तथा श्लोक#३१,३२ वर्णित विषय का विस्तार इस श्लोक में है|श्लोक #२९ में श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि उनके (ईश्वर के) लिए सिर्फ सभी मनुष्य ही नहीं बल्कि सभी जीव एक समान हैं और भगवान श्री कृष्ण किसी भी जीव से भेद भाव नहीं करते| श्लोक #३०,३१ में भगवान ने आगे वर्णित किया कि ईश्वर का द्वार सबके लिए खुला है, यहाँ तक कि कोई दुराचारी भी अपनी सभी पाप कर्मो को त्याग कर ईश्वर की शरण में आता है और निरंतर ईश्वर की साधना करता है तों एक समय के पश्चात वह अपने पापों से मुक्त हो जाता है|
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने उसी विषय का विस्तार बताया कि ईश्वर का द्वार हमेशा हर सब के लिए खुला है| इस श्लोक खास बात यह है कि श्री कृष्ण ने समाज के कुछ वर्गों का वर्णन किया है| जैसे स्त्री, वैश्य , शुद्र और पापी के घर में पैदा हुआ मनुष्य | वैसे तों इन वर्गों में आपस में कोई समानता नहीं है सिवाय एक चीज़ के| वह यह कि यह इन सभी वर्गों के पास ईश्वर की साधना के लिए समय और अवसर की कमी है|
कुछ मनुष्य ऐसे हैं जो अपराधी प्रवृति के घर में पैदा हो जाते हैं|उनके परिवार में एक या एक अस अधिक अपराधिक प्रवृति के लोग रहते हैं| उनका सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि उनको बचपन से ही गलत माहौल मिलता है और इसलिए उनके पास ईश्वर के मार्ग में आने के अवसर बहुत कम होते हैं| अगर किसी प्रकार से वह घर के गलत माहौल से प्रभावित होने से बच भी जाएँ तों समाज उनके लिए कई बाधाएं पैदा कर देता है|

दूसरा वर्ग है स्त्री| यह सर्व विदित है कि स्त्री के ऊपर परिवार का पूरा भार होता है उनके पास सांस लेंने का अवसर नहीं होता | ऐसे में शास्त्र अध्ययन या अध्यात्मिक विकास के लिए उन्हें समय नहीं मिल पाता|
वैश्य समाज के वे वर्ग हैं जो अधिकतर नौकरी अथवा व्यापर में संलग्न होते हैं| इनके पास भी ईश्वर की साधना और अध्यात्मिक विकास के लिए समय का अभाव होता है|
अंतिम वर्ग जिसका इस श्लोक में वर्णन है वह शुद्र| यह समाज का वह वर्ग है जो कृषि, शारीरिक परिश्रम आदि कठिन कार्यों में व्यस्त रहते हैं| इनके पास भी ईश्वर साधना के लिए समय की कमी होती है|
सारांश यह है कि इस श्लोक में वर्णित सभी वर्गों के एक या दूसरे कारण से अध्यात्मिक विकाश के लिए समय या अवसर का अभाव होता है| ये शास्त्र अध्ययन या दूसरे मध्यम से अध्यात्मिक विकास के अवसरों से वंचित रह जाते हैं|
भगवान श्री कृष्ण ने इस श्लोक में श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि ऐसे मनुष्य बिना शास्त्र अध्ययन किये, या बिना किसी ज्ञान की प्राप्ति किये सिर्फ श्री कृष्ण की शरण मी आ जाते हैं वो उनके लिए मोक्ष का द्वार खुल जाता है| ईश्वर उनकी शुद्ध भक्ति को बिना कोई गुण दोष देखे स्वीकार करते हैं|