अध्याय9 श्लोक33 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 33

किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्‌ ॥

संधि विच्छेद

किं पुनः ब्रम्हामणाः पुण्या भक्ता राजर्षयः तथा ।
अनित्यम् सुखं लोकम् इमं प्राप्य भजस्व माम्‌ ॥

अनुवाद

फिर ब्राम्हण और राजऋषियों में [मेरे] पुण्य भक्तो के क्या कहने, कि जो इस क्षणिक सुख वाले(क्षणभंगुर) संसार में मेरी साधना में संलग्न होते हैं|

व्याख्या

इसके पूर्व श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने समाज के कुछ वर्गों को, जिनके पास अध्यात्मिक विकास, शास्त्र अध्ययन और साधना के लिए समय या अवसर नहीं होता, लेकिन वह भी सच्चे मन से अपने आप को ईश्वर के चरणों में समर्पित करके मोक्ष को प्राप्त करते हैं| इस श्लोक में भगवान ने समाज के कुछ दूसरे वर्गों का उल्लेख किया है, जैसे ब्राह्मण और राज्य के शासन में उच्च स्थान पर अवस्थित लोग| यह वह वर्ग है जिनके पास शास्त्र अध्ययन, अध्यात्मिक विकास और साधना के लिए पर्याप्त समय और साधन उपलब्ध हैं|
इन वर्ग के लोगों के लिए ईश्वर की साधना नहीं करने का कोई बहाना नहीं होना चाहिए| एक गरीब, गृहस्थी में व्यस्त मनुष्य ईश्वर की साधना न करे तों उसके पास फिर भी एक कारण बनता है लेकिन एक सामर्थ्यवान मनुष्य अगर ईश्वर की साधना से वंचित रह जाए तों यह एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है|

यहाँ एक बात बता दे कि इस श्लोक के दूसरे पंक्ति का अनुवाद श्लोक का अनुवाद दो प्रकार से हुआ है| ऊपर दिया हुआ अनुवाद, श्री माधवाचार्य और प्रभुपाद के अनुवाद के अनुकूल है| इस अनुवाद के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने यह कहने के प्रयास किया है कि एक ओर तों सामर्थ्यवान होना ईश्वर तक पहुँचनेअ एक अच्छा अवसर प्रदान करता है लेकिन वहीँ दूसरी ओर धन और सांसारिक ऐश्वर्य मनुष्य को ईश्वर के दूर भी ले जा सकते हैं अगर वह सावधान नहीं| अतः कोई मनुष्य सामर्थ्यवान हो तों उसे यह याद रखना चाहिए कि यह सांसारिक सुख क्षणभंगुर हैं इसलिए सांसारिक सुख में मोहित होकर मनुष्य इस ईश्वर की साधना से दूर नहीं होना चाहिए|

श्री आदि शंकराचार्य और श्री रामानुजाचार्य ने दूसरी पंक्ति का अनुवाद कुछ भिन्न रूप से किया है वह इस प्रकार है
“क्षणिक सुख वाले इस इस क्षणभंगुर संसार में आकार क्या तुमने मेरी साधना की”
इस अनुवाद के अनुसार जो व्याख्या बनती है वह है कि श्री कृष्ण अर्जुन से यह कह रहे हैं कि सभी वर्ग के लोग चाहे वह निर्धन हो या धनी, स्त्री हो या पुरुष, सब मेरी साधना के द्वारा ही मोक्ष को प्राप्त करते हैं| क्या तुमने मेरी प्रति भक्ति की?
ऊपर के अनुवाद में से अगर हम कोई भी अर्थ लें भावार्थ यही बनता है कि श्री कृष्ण की साधना से ही मोक्ष की प्राप्ति सुनिश्चित है अतः कोई भी मनुष्य किसी भी वर्ग या अवस्था में क्यों न हो उसे श्री कृष्ण की शरण में आना चाहिए|