अध्याय9 श्लोक34 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 34

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ॥

संधि विच्छेद

मत् मनः भव मत् भक्तः मत् याजी मां नमः कुरु ।
माम एव एष्यसि युक्त्व एवं आत्मानं मत् परायण: ॥

अनुवाद

[अगर मुझे प्राप्त करना चाहते हो तों] मुझे अपने मन में धारण करो, मेरा भक्त बनो, मेरी साधना(पूजन) करो, मेरा नमन करो| इस प्रकार अपनी आत्मा को मुझमे पूर्ण रूप से स्थित करते हुए तुम [ निश्चित ही] मुझे प्राप्त करोगे

व्याख्या

इस अध्याय के श्लोक #२० से भक्ति के विभिन्न अवययो का वर्णन किया गया| भगवान श्री कृष्ण ने शुरू के श्लोक ने भिन्न गुणों से युक्त मनुष्यों द्वारा भिन्न भिन्न देवताओं और यहाँ तक की पूर्वजों की साधना के अनुरूप फल का वर्णन किया| जो मनुष्य किसी भी उपयुक्त इक्षा की पूर्ति के लिए जिस किसी देवता की साधना करते हैं, साधना के सफल होने पर उनकी वह इक्षा पूरी होती है और वैसे साधक अगले जन्म में उसी देवता के लोक में जन्म लेते हैं| इसी प्रकार पितरों की साधना करने वाले अपने पितरों के लोक में जन्म लेते हैं| बाद के श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने भक्ति और साधना के दूसरे अवयवों का वर्णन किया और बताया कि उनका द्वारा सभी मनुष्यों के लिए खुला है चाहे वह किसी वर्ग, किसी पारिवारिक पृष्ठभूमि का ही क्यों न हो| श्री कृष्ण मनुष्य तों क्या किसी भी जीव में भेद भाव नहीं करते(9.29)| अगर कोई मनुष्य किसी कारण वश पाप कर्मो में भी लगा हो लेकिन समय पर उसे सद्बुधि आ जाए और श्री कृष्ण की शरण में आकार अपना प्रायश्चित करना चाहे तों श्री कृष्ण वैसे मनुष्य को भी शरण में लेते हैं|

इन सभी विषयों का वर्णन करने के बाद इस अध्याय के अंतिम श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को वह मार्ग बता रहे हैं जिससे मनुष्य निश्चित ही भगवान श्री कृष्ण के लोक को प्राप्त होता है| भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अगर तुम वास्तव मुझे प्राप्त करना चाहते हो तों अपनी आत्मा, अपने मन और अपनी साधना को पूर्ण रूप से मुझमे लगाओ | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मुझे प्राप्त करोगे| इसमे कोई भी संदेह नहीं|

इस प्रकार इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने मनुष्यों के लिए वह मार्ग बताया जिससे श्री मोक्ष और श्री कृष्ण के लोक की प्राप्ति निश्चित है|