अध्याय9 श्लोक4 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 04

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेषवस्थितः ॥

संधि विच्छेद

मया ततम् इदं सर्वं जगत अव्यक्त-मुर्तिना ।
मत् स्थानि सर्व भूतानि न च अहं तेषु अवस्थितः ॥

अनुवाद

यह सम्पूर्ण जगत मेरे अव्यक्त रूप (या अव्यक्त शक्ति) से विद्यमान है| सभी जीव मुझपर निर्भर हैं परन्तु मैं किसी पर निर्भर नही हूँ|

व्याख्या

यह श्लोक श्रीमद भगवद गीता ही नहीं सम्पूर्ण सनातन शास्त्रों में सबसे महत्वपूर्ण श्लोकों में में से एक है| इस श्लोक और आगे के कई श्लोकों में श्रृष्टि और जीवों के श्रृजन से सम्बंधित अत्यंत गुढ़ सिद्धांतों का वर्णन है| इस श्लोकों को समझने से कई महत्वपूर्ण प्रश्न जैसे ईश्वर किस प्रकार सभी जीवों में व्याप्त है, श्रृष्टि का निर्माण किस शक्ति से हुई आदि आदि|

ऊपर के श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने मुख्य दो सिधान्तों का उल्लेख किया है
१. श्री कृष्ण ने अव्यक्त रुप से श्रृष्टि का श्रृजन
२. सभी जीव परोक्ष रूप से ईश्वर पर निर्भर हैं
३. ईश्वर स्वतन्त्र है और किसी भी इकाई पर निर्भर नहीं

यह पूरी श्रृष्टि भगवान के अदृश्य शक्ति से विद्यमान है| जैसा अध्याय ८ में वर्णित किया गया और आगे इस अध्याय में भी उल्लेखित है कि ब्रम्हा के दिन के समय पूरी श्रृष्टि अदृश्य से दृष्टिगोचर रूप में प्रकट होती है और ब्रम्हा की रात्रि के आरम्भ में पूरी श्रृष्टि पुनः अदृश्य शक्ति में परिवर्तित हो जाती है| यह इस सिद्धांत को प्रतिपादित करता है कि श्रृष्टि किसी शुन्य से नहीं बनी और नहीं ही श्रृष्टि विलीन होकर शुन्य में परिवर्तित हो सकती है| हाँ व्यक्त या अव्यक्त रूप में इस श्रृष्टि का परिवर्तन होता है| इसमे श्रृष्टि का श्रोत श्री कृष्ण की अव्यक्त शक्ति है|
इस तथ्य पर आगे भगवान ने स्पस्ट किया कि सभी जीव परोक्ष रूप से श्री कृष्ण पर निर्भर हैं | शास्त्रों में कई स्थानों पर ईश्वर के लिए परमात्मा का उल्लेख है| जिसपर सभी आत्माएं निर्भर हैं वह परम आत्मा अर्थात ईश्वर है| वह ईश्वर भगवान श्री कृष्ण है| श्री कृष्ण ने यहाँ पर स्पस्ट रूप से प्रथम पुरुष का प्रयोग किया है “सभी जीव मुझपर निर्भर हैं”|