अध्याय9 श्लोक7,8 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 07-08

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्‌ ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्‌ ॥
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्‌ ॥

संधि विच्छेद

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्‌ ।
कल्पक्षये पुनः स्तानि कल्प अदौ विसृजामि अहम्‌ ॥
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्रामम् इमं कृत्स्नम् अवशं प्रकृतेः वशात्‌ ॥

अनुवाद

हे कुन्ती पुत्र! कल्प के अन्त में सभी जीव मेरी प्रकृति में विलीन होते हैं और कल्प के आरम्भ में मै उनका पुनः सृजन करता हूँ| अपनी प्रकृति को नियंत्रित करके मै बार बार इस सृष्टि का [कल्प के आरंभ में] सृजन करता हूँ और [कल्प के अन्त में] उसका प्रलय करता हूँ|

व्याख्या

इसके पहले के दो श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने यह विवरण दिया कि उनकी अव्यक्त शक्ति से इस भौतिक जगत की उत्पत्ति हुई और उनकी आत्मीय शक्ति से सभी जीवों में जीवन स्थित है|

इन दों श्लोकों में श्री कृष्ण इस सृष्टि का परिचालन(सृष्टि का पालन ) कैसे होता है, का वर्णन कर रहे हैं| यह याद दिला दे की अध्याय 8 में सृष्टि के चक्र का विवरण दिया गया है| उसके अनुसार ब्रम्हा के दिन के आरम्भ पर यह श्रृष्टि अव्यक्त से व्यक्त रूप में आती है और ब्रम्हा के दिन के अंत या ब्रम्हा की रात्रि के आरम्भ पर यह भौतिक सृष्टि पुनः अव्यक्त रूप या अदृश्य शक्ति के रूप में परिवर्तित हो जाती है| इस प्रक्रिया चलती रहती है| अध्यात आठ में यह स्पस्ट रूप से वर्णित है कि सृष्टि अव्यक्त और व्यक्त रूप में बार बार परिवर्तित होती रहती है| वहाँ पर यह प्रश्न शेष रह जाता था कि आखिर यह अव्यक्त शक्ति स्थित कहाँ और और इसको धारण कौन करता है?
ऊपर के दो श्लोकों में उसी प्रश्न का उत्तर है| इन दों श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने यह पूर्ण स्पस्ट किया कि वह अव्यक्त शक्ति जिससे सृष्टि का निर्माण होता है वह भगवान श्री कृष्ण की अपनी शक्ति है और श्री कृष्ण स्वयं उसे धारण करते हैं| ब्रम्हा के दिन के आरम्भ पर भगवान की अव्यक्त शक्ति से सृष्टि का निर्माण होता है और ब्रम्हा के दिन के अन्त पर यह पूरी सृष्टि भगवान श्री कृष्ण की अव्यक्त शक्ति में विलीन हो जाती है| यह क्रम चलता रहता है|

यह अध्याय ८ के श्लोकों के साथ यह श्लोक सृष्टि निर्माण से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देता है| इन श्लोकों से यह निष्कर्ष निकालता है कि सृष्टि का निर्माण कभी शुन्य से नहीं हो सकता और न ही यह सृष्टि शून्य में विलीन हो सकती है| यह श्लोक यह भी निष्कर्ष देते हैं कि व्यक्त और अव्यक्त (matter and energy) एक दूसरे में परिवर्तित हो सकते हैं|