सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ॥
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् ॥
संधि विच्छेद
सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् ।
कल्पक्षये पुनः स्तानि कल्प अदौ विसृजामि अहम् ॥
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्रामम् इमं कृत्स्नम् अवशं प्रकृतेः वशात् ॥
अनुवाद
हे कुन्ती पुत्र! कल्प के अन्त में सभी जीव मेरी प्रकृति में विलीन होते हैं और कल्प के आरम्भ में मै उनका पुनः सृजन करता हूँ| अपनी प्रकृति को नियंत्रित करके मै बार बार इस सृष्टि का [कल्प के आरंभ में] सृजन करता हूँ और [कल्प के अन्त में] उसका प्रलय करता हूँ|
व्याख्या
इसके पहले के दो श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने यह विवरण दिया कि उनकी अव्यक्त शक्ति से इस भौतिक जगत की उत्पत्ति हुई और उनकी आत्मीय शक्ति से सभी जीवों में जीवन स्थित है|