अध्याय9 श्लोक10 - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9 : राज विद्या राज गुह्य योग

अ 09 : श 10

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥

संधि विच्छेद

मया अध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुना अनेन कौन्तेय जगत् विपरिवर्तते ॥

अनुवाद

हे अर्जुन! मेरे स्वामित्व में(अर्थात मेरे द्वारा निर्धारित प्राकृतिक नियमों से) यह प्रकृति सभी चर और अचर जीवों की रचना करती है| इस प्रकार सृष्टि चक्र का संचालन होता है|

व्याख्या

इसके पहले के श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने दो मुख्य तथ्यों का उल्लेख किया | वे हैं १ श्री कृष्ण की अव्यक्त और आत्मीय शक्ति से प्रकृति और जीवों की रचना हुई है(Sh#4,5) २. श्री कृष्ण द्वारा सृष्टि का संचालन होता है(Sh#8)|


यहाँ दूसरे तथ्य से सम्बंधित एक प्रश्न रह जाता है कि श्री कृष्ण सृष्टि का संचालन कैसे करते हैं? सृष्टि में हर एक पल हजारों लाखों घटनाएँ और सैकड़ों,हजारों प्रकार की अति जटिल प्रक्रियाएं होती रहती है|एक छोटे कण से लेकर बड़े पहाड तक, एक जल की बूंद से लेकर समुद्र तक, एक कीटाणु से लेकर मनुष्य तक हर चीज़ अदभुत और विस्मयकारी है| कैसे यह सब संपन्न होता है| क्या श्री कृष्ण स्वयं यह सब करते हैं? क्या श्री कृष्ण बादल बनाते हैं और बारिस करवाते हैं, क्या श्री कृष्ण सौर मंडल में ग्रहों और उपग्रहों को अपनी कक्षा में गतिमान रखते हैं? सीधा उत्तर है, नहीं श्री कृष्ण स्वयं प्रकृति में होने वाली किसी भी प्रक्रिया में स्वयं शामिल नहीं होते|


प्रश्न वही है कि फिर किस प्रकार श्री कृष्ण प्रकृति का संचालन करते हैं?


यह श्लोक उसी प्रश्न का उत्तर देता है | इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने यह स्पस्ट किया कि उन्होंने इस प्रकृति का निर्माण किया और उसके साथ ही प्रकृति के सभी नियमों को स्थापित किया| प्रकृति में सब कुछ ईश्वर प्राकृतिक नियमों के अधीन स्वयं होता रहता है| सभी चर और अचर जीव इन्ही प्राकृतिक नियमों के अधीन जन्म लेते हैं और मृत्यु को प्राप्त होते हैं| सभी प्राकृतिक प्रक्रियाएं उन्ही प्राकृतिक नियंमो के अधीन उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं|


इस प्रकार प्रति पल सृष्टि का चक्र चलता रहता है|