Intro - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

Norway

श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता
भगवद का अर्थ होता है, ईश्वर के द्वारा या ईश्वर का |
गीता का अर्थ होता है गीत या शब्द
भगवद गीता का अर्थ अतः होता है “ईश्वर का गीत” या “ईश्वर के शब्द”

“श्रीमद” एक आदरसूचक शब्द है ओ ईश्वर, देवताओं,ऋषियों या अति महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों के नाम के पहले लगाया जाता है| इससे मिलते जुलते शब्द हैं “श्री” और ”श्रीमान” | श्री शब्द जिसका अंग्रेजी अनुवाद है मिस्टर, का प्रयोग किसी पुलिंग नाम के आगे किया जाता है| “श्रीमान” शब्द का प्रयोग किसी सम्माननीय व्यक्ति को संबोधिक करने के लिए किया जाता है|

भगवद गीता हिंदू धर्म के सबसे पवित्र शास्त्रों में माना जाता है अतः भगवद गीता के आगे श्रीमद शब्द का प्रयोग होता है| श्रीमद भगवद गीता अतः इस ग्रन्थ का सबसे उचित उच्चारण है|

श्रीमद भगवद गीता भगवान श्री और अर्जुन के बीच महाभारत के कुरुक्षेत्र में हुए संवाद का संकलन है| श्रीमद भगवद गीता महाभारत ग्रन्थ का ही एक भाग है| महाभारत के भीष्म पर्व के २५ से ४२ तक के अध्यायों को श्रीमद भगवद गीता कहा जाता है|

महाभारत का युद्ध प्राचीन भारत में लड़ा गया सबसे बड़ा युद्ध था| हालाकि यह युद्ध के ही परिवार के दो दो पिता के पुत्रों पांडव और कौरवों के बीच राज्य को लेकर विवाद के लिए था लेकिन कौरवों की तरफ से हुए कई षड्यंत्रकारी कार्यकलापों और लालच के कारण यह बहुत गंभीर हो गया| जब दोनों पक्षों के बीच समझौतों के सभी मार्ग बंद हो गए तों दों पक्षों ने युद्ध का निर्णय लिया| इन दों पक्षों ने फिर भारतवर्ष के सभी राजाओं से अपना सहयोग माँगा| कुछ राजा पांडवों की ओर और कुछ राजा कौरवों के पक्ष में हो गए| इस प्रकार दोनों तरफ से भारी सेना तैयार हुई और दोनों सेनाएं आखिरकार कुरुक्षेत्र में एकत्रित हुईं|
यह भी ज्ञात हो कि श्री कृष्ण उस समय दवारका में अपना राज्य स्थापित कर चुके थे| पांडव और कौरव दोनों श्री कृष्ण के पास सहायता के लिए गए| लेकिन श्री कृष्ण ने किसी की तरफ से युद्ध करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि दोनों ही पक्ष उनके लिए समान हैं| लेकिन गोनो पक्ष फिर भी अड़े रहे तों श्री कृष्ण एक तरफ अपनी सेना और दूसरी तरफ खुद को निहत्थे रूप में युद्ध में शामिल करने पर राजी हुए| अर्जुन श्री कृष्ण न परम भक्त था अतः अर्जुन ने सेना के बजाय श्री कृष्ण को अपनी सेना में आने का आग्रह किया| दुर्योधन श्री कृष्ण की सेना लेकर बहुत खुश था|

युद्ध शुरू होने के पहले अर्जुन ने श्री कृष्ण से उसका सारथी और मार्गदर्शक बनने का अनुरोध किया जिसे श्री कृष्ण ने स्वीकार किया|

श्री कृष्ण अतः अर्जुन एक सारथी के रूप कुरुक्षेत्र में उपस्थित थे| दोनों सेनाए एक दूसरे के सामने थी| अब युद्ध शुरू होने ही वाला था कि अर्जुन ने दोनों सेनाओं का निरिक्षण करने के इक्षा जाहिर की| अर्जुन के अनुरोध पर श्री कृष्ण अर्थ को दोनों सेनाओं के मध्य ले गए| अर्जुन ने अपनी नज़र उठाकर विरोधी सेना की ओर देखा, तों क्या देखता हैं? वहाँ उसके पितामह भीष्म है जिसकी गोद में वह खेलता था एक बचपन में| गुरु द्रोण हैं जिनके पास अर्जुन ने शिक्षा प्राप्त की, कृपाचार्य हैं जो कुलगुरु हैं| इसले अलावा उसके मामा मद्र नरेश, उसके साथ पढ़े मित्र, सगे सम्बन्धी आदि सभी विरोधी सेना में हैं| अर्जुन जैसे पहाड से गिर गया हो, उसके मन जैसे एक धक्का स लगा| क्या अपने पितामह, गुरु, कुलगुरु, अपने मित्रों और सगी संबंधियों को मारकर युद्ध जितना पड़ेगा| ऐसी जीत का क्या प्रयोजन? उसका मन ग्लानि से भर गया, शरीर सीथिल हो गया | उसने अपने धनुष वाण रख दिए और युद्ध करने से इनकार कर दिया|

श्री कृष्ण ने पहले अर्जुन को समझाने का प्रयास किया कि युद्ध का मैदान वह स्थान नहीं और न ही यह समय जहाँ पर ऐसी बातें सोची जाएँ|लेकिन अर्जुन नहीं माना| वह बुरी तरह से भ्रमित हो चुका था| उसे यह समझ नहीं आ रहा था किस उसके लिए क्या उचित है| अपने ही सगी संबंधियों के साथ युद्ध करना या फिर युद्ध का त्याग करना| ऐसी भ्रम की स्थति में उसनें अपने आप को श्री कृष्ण की चरणों में समर्पित कर दिया और मार्गदर्शन करने का आग्रह किया|

अर्जुन की चेष्ठा पवित्र है और उसके प्रश्न उचित हैं यह स्वीकार कर श्री कृष्ण ने तब अर्जुन को कर्तव्य, कर्म, योग, ईश्वरत्व, जीवन और प्रकृति से सम्बंधित सभी रहस्यों उद्घाटन किया| श्री कृष्ण ने अर्जुन द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नों के उत्तर दिया| यही नहीं श्री कृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय भी अर्जुन को दिया और बताया कि वह स्वयं सम्पूर्ण श्रृष्टि के स्वामि और ईश्वर हैं| यह जानकर अर्जुन की जिज्ञासा और बढ़ी तों उसने श्री कृष्ण के वास्तविक स्वरूप को देखने की इक्षा जाहिर की| श्री कृष्ण ने तब अर्जुन को अपना वास्तविक रूप दिखया, जिसे विश्वरूप कहा जाता है| अपने विश्वरूप में भगवान श्री कृष्ण ने यह दिखाया कि किस प्रकार पूरी सृष्टि उनमें ही स्थित है |

701 पंक्तियों जो 18 अध्यायों में संकलित है वही वार्तालाप श्रीमद भगवद गीता के रूप हम जानते हैं विश्व का एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जिसमे ईश्वर स्वयं प्रथम बोल रहे हैं और वह हुबहू वैसे ही संकलित है|

श्रीमद भगवद गीता की भाषा शैली अत्यंत विशेष है जिसमे क्रिया अधिकतर गुप्त हैं और इसलिए एक ही श्लोक के कई अर्थ संभव हैं| इसके इसमे उच्च सिद्धांतों जैसे योग, यज्ञ आदि का एक से अधिक परिपेक्ष्य में प्रयोग है| कहीं योग ईश्वर की भक्ति के लिए प्रयोग किया गया है, कहीं पर यह राजयोग की साधना के लिए| वही अन्य स्थान पर कर्म योग के लिए, आदि|

श्रीमद भगवद गीता मात्र एक ग्रन्थ नहीं बल्कि एक पूर्ण यात्रा है अज्ञानता से ज्ञानता तक की|इसके इस गुण के कारण ही श्रीमद भगवद गीता हिंदू धर्म ग्रन्थ टीन मुख्य ग्रंथों १. श्री ब्रम्ह सूत्र २. उपनिषद और ३ श्रीमद भगवद गीता में गिना जाता है| ईश्वर ए श्री मुख से उद्धृत इसके शब्द आत्मा के लिए अमृत के समान हैं| इसके अध्ययन से सर्वथा कल्याण ही होत है|

हरे कृष्ण !